ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
गउड़ी सुखमनी म: ५ ॥
सलोकु ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
आदि गुरए नमह ॥
जुगादि गुरए नमह ॥
सतिगुरए नमह ॥
स्री गुरदेवए नमह ॥१॥
असटपदी ॥
सिमरउ सिमरि सिमरि सुखु पावउ ॥
कलि कलेस तन माहि मिटावउ ॥
सिमरउ जासु बिसुँभर एकै ॥
नामु जपत अगनत अनेकै ॥
बेद पुरान सिंमृति सुधाख्यर ॥
कीने राम नाम इक आख्यर ॥
किनका एक जिसु जीअ बसावै ॥
ता की महिमा गनी न आवै ॥
काँखी एकै दरस तुहारो ॥
नानक उन संगि मोहि उधारो ॥१॥
सुखमनी सुख अंमृत प्रभ नामु ॥
भगत जना कै मनि बिस्राम ॥ रहाउ ॥
प्रभ कै सिमरनि गरभि न बसै ॥
प्रभ कै सिमरनि दूखु जमु नसै ॥
प्रभ कै सिमरनि कालु परहरै ॥
प्रभ कै सिमरनि दुसमनु टरै ॥
प्रभ सिमरत कछु बिघनु न लागै ॥
प्रभ कै सिमरनि अनदिनु जागै ॥
प्रभ कै सिमरनि भउ न बिआपै ॥
प्रभ कै सिमरनि दुखु न संतापै ॥
प्रभ का सिमरनु साध कै संगि ॥
सरब निधान नानक हरि रंगि ॥२॥
प्रभ कै सिमरनि रिधि सिधि नउ निधि ॥
प्रभ कै सिमरनि गिआनु धिआनु ततु बुधि ॥
प्रभ कै सिमरनि जप तप पूजा ॥
प्रभ कै सिमरनि बिनसै दूजा ॥
प्रभ कै सिमरनि तीरथ इसनानी ॥
प्रभ कै सिमरनि दरगह मानी ॥
प्रभ कै सिमरनि होइ सु भला ॥
प्रभ कै सिमरनि सुफल फला ॥
से सिमरहि जिन आपि सिमराए ॥
नानक ता कै लागउ पाए ॥३॥
प्रभ का सिमरनु सभ ते ऊचा ॥
प्रभ कै सिमरनि उधरे मूचा ॥
प्रभ कै सिमरनि तृसना बुझै ॥
प्रभ कै सिमरनि सभु किछु सुझै ॥
प्रभ कै सिमरनि नाही जम त्रासा ॥
प्रभ कै सिमरनि पूरन आसा ॥
प्रभ कै सिमरनि मन की मलु जाइ ॥
अंमृत नामु रिद माहि समाइ ॥
प्रभ जी बसहि साध की रसना ॥
नानक जन का दासनि दसना ॥४॥
प्रभ कउ सिमरहि से धनवंते ॥
प्रभ कउ सिमरहि से पतिवंते ॥
प्रभ कउ सिमरहि से जन परवान ॥
प्रभ कउ सिमरहि से पुरख प्रधान ॥
प्रभ कउ सिमरहि सि बेमुहताजे ॥
प्रभ कउ सिमरहि सि सरब के राजे ॥
प्रभ कउ सिमरहि से सुखवासी ॥
प्रभ कउ सिमरहि सदा अबिनासी ॥
सिमरन ते लागे जिन आपि दइआला ॥
नानक जन की मंगै रवाला ॥५॥
प्रभ कउ सिमरहि से परउपकारी ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन सद बलिहारी ॥
प्रभ कउ सिमरहि से मुख सुहावे ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन सूखि बिहावै ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन आतमु जीता ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन निरमल रीता ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन अनद घनेरे ॥
प्रभ कउ सिमरहि बसहि हरि नेरे ॥
संत कृपा ते अनदिनु जागि ॥
नानक सिमरनु पूरै भागि ॥६॥
प्रभ कै सिमरनि कारज पूरे ॥
प्रभ कै सिमरनि कबहु न झूरे ॥
प्रभ कै सिमरनि हरि गुन बानी ॥
प्रभ कै सिमरनि सहजि समानी ॥
प्रभ कै सिमरनि निहचल आसनु ॥
प्रभ कै सिमरनि कमल बिगासनु ॥
प्रभ कै सिमरनि अनहद झुनकार ॥
सुखु प्रभ सिमरन का अंतु न पार ॥
सिमरहि से जन जिन कउ प्रभ मइआ ॥
नानक तिन जन सरनी पइआ ॥७॥
हरि सिमरनु करि भगत प्रगटाए ॥
हरि सिमरनि लगि बेद उपाए ॥
हरि सिमरनि भए सिध जती दाते ॥
हरि सिमरनि नीच चहु कुँट जाते ॥
हरि सिमरनि धारी सभ धरना ॥
सिमरि सिमरि हरि कारन करना ॥
हरि सिमरनि कीओ सगल अकारा ॥
हरि सिमरन महि आपि निरंकारा ॥
करि किरपा जिसु आपि बुझाइआ ॥
नानक गुरमुखि हरि सिमरनु तिनि पाइआ ॥८॥१॥
सलोकु ॥
दीन दरद दुख भंजना घटि घटि नाथ अनाथ ॥
सरणि तुम्मारी आइओ नानक के प्रभ साथ ॥१॥
असटपदी ॥
जह मात पिता सुत मीत न भाई ॥
मन ऊहा नामु तेरै संगि सहाई ॥
जह महा भइआन दूत जम दलै ॥
तह केवल नामु संगि तेरै चलै ॥
जह मुसकल होवै अति भारी ॥
हरि को नामु खिन माहि उधारी ॥
अनिक पुनहचरन करत नही तरै ॥
हरि को नामु कोटि पाप परहरै ॥
गुरमुखि नामु जपहु मन मेरे ॥
नानक पावहु सूख घनेरे ॥१॥
सगल सृसटि को राजा दुखीआ ॥
हरि का नामु जपत होइ सुखीआ ॥
लाख करोरी बंधु न परै ॥
हरि का नामु जपत निसतरै ॥
अनिक माइआ रंग तिख न बुझावै ॥
हरि का नामु जपत आघावै ॥
जिह मारगि इहु जात इकेला ॥
तह हरि नामु संगि होत सुहेला ॥
ऐसा नामु मन सदा धिआईऐ ॥
नानक गुरमुखि परम गति पाईऐ ॥२॥
छूटत नही कोटि लख बाही ॥
नामु जपत तह पारि पराही ॥
अनिक बिघन जह आइ संघारै ॥
हरि का नामु ततकाल उधारै ॥
अनिक जोनि जनमै मरि जाम ॥
नामु जपत पावै बिस्राम ॥
हउ मैला मलु कबहु न धोवै ॥
हरि का नामु कोटि पाप खोवै ॥
ऐसा नामु जपहु मन रंगि ॥
नानक पाईऐ साध कै संगि ॥३॥
जिह मारग के गने जाहि न कोसा ॥
हरि का नामु ऊहा संगि तोसा ॥
जिह पैडै महा अंध गुबारा ॥
हरि का नामु संगि उजीआरा ॥
जहा पंथि तेरा को न सिञानू ॥
हरि का नामु तह नालि पछानू ॥
जह महा भइआन तपति बहु घाम ॥
तह हरि के नाम की तुम ऊपरि छाम ॥
जहा तृखा मन तुझु आकरखै ॥
तह नानक हरि हरि अंमृतु बरखै ॥४॥
भगत जना की बरतनि नामु ॥
संत जना कै मनि बिस्रामु ॥
हरि का नामु दास की ओट ॥
हरि कै नामि उधरे जन कोटि ॥
हरि जसु करत संत दिनु राति ॥
हरि हरि अउखधु साध कमाति ॥
हरि जन कै हरि नामु निधानु ॥
पारब्रहमि जन कीनो दान ॥
मन तन रंगि रते रंग एकै ॥
नानक जन कै बिरति बिबेकै ॥५॥
हरि का नामु जन कउ मुकति जुगति ॥
हरि कै नामि जन कउ तृपति भुगति ॥
हरि का नामु जन का रूप रंगु ॥
हरि नामु जपत कब परै न भंगु ॥
हरि का नामु जन की वडिआई ॥
हरि कै नामि जन सोभा पाई ॥
हरि का नामु जन कउ भोग जोग ॥
हरि नामु जपत कछु नाहि बिओगु ॥
जनु राता हरि नाम की सेवा ॥
नानक पूजै हरि हरि देवा ॥६॥
हरि हरि जन कै मालु खजीना ॥
हरि धनु जन कउ आपि प्रभि दीना ॥
हरि हरि जन कै ओट सताणी ॥
हरि प्रतापि जन अवर न जाणी ॥
ओति पोति जन हरि रसि राते ॥
सुँन समाधि नाम रस माते ॥
आठ पहर जनु हरि हरि जपै ॥
हरि का भगतु प्रगट नही छपै ॥
हरि की भगति मुकति बहु करे ॥
नानक जन संगि केते तरे ॥७॥
पारजातु इहु हरि को नाम ॥
कामधेन हरि हरि गुण गाम ॥
सभ ते ऊतम हरि की कथा ॥
नामु सुनत दरद दुख लथा ॥
नाम की महिमा संत रिद वसै ॥
संत प्रतापि दुरतु सभु नसै ॥
संत का संगु वडभागी पाईऐ ॥
संत की सेवा नामु धिआईऐ ॥
नाम तुलि कछु अवरु न होइ ॥
नानक गुरमुखि नामु पावै जनु कोइ ॥८॥२॥
सलोकु ॥
बहु सासत्र बहु सिमृती पेखे सरब ढढोलि ॥
पूजसि नाही हरि हरे नानक नाम अमोल ॥१॥
असटपदी ॥
जाप ताप गिआन सभि धिआन ॥
खट सासत्र सिमृति वखिआन ॥
जोग अभिआस करम ध्रम किरिआ ॥
सगल तिआगि बन मधे फिरिआ ॥
अनिक प्रकार कीए बहु जतना ॥
पुँन दान होमे बहु रतना ॥
सरीरु कटाइ होमै करि राती ॥
वरत नेम करै बहु भाती ॥
नही तुलि राम नाम बीचार ॥
नानक गुरमुखि नामु जपीऐ इक बार ॥१॥
नउ खंड पृथमी फिरै चिरु जीवै ॥
महा उदासु तपीसरु थीवै ॥
अगनि माहि होमत परान ॥
कनिक अस्व हैवर भूमि दान ॥
निउली करम करै बहु आसन ॥
जैन मारग संजम अति साधन ॥
निमख निमख करि सरीरु कटावै ॥
तउ भी हउमै मैलु न जावै ॥
हरि के नाम समसरि कछु नाहि ॥
नानक गुरमुखि नामु जपत गति पाहि ॥२॥
मन कामना तीरथ देह छुटै ॥
गरबु गुमानु न मन ते हुटै ॥
सोच करै दिनसु अरु राति ॥
मन की मैलु न तन ते जाति ॥
इसु देही कउ बहु साधना करै ॥
मन ते कबहू न बिखिआ टरै ॥
जलि धोवै बहु देह अनीति ॥
सुध कहा होइ काची भीति ॥
मन हरि के नाम की महिमा ऊच ॥
नानक नामि उधरे पतित बहु मूच ॥३॥
बहुतु सिआणप जम का भउ बिआपै ॥
अनिक जतन करि तृसन ना ध्रापै ॥
भेख अनेक अगनि नही बुझै ॥
कोटि उपाव दरगह नही सिझै ॥
छूटसि नाही ऊभ पइआलि ॥
मोहि बिआपहि माइआ जालि ॥
अवर करतूति सगली जमु डानै ॥
गोविंद भजन बिनु तिलु नही मानै ॥
हरि का नामु जपत दुखु जाइ ॥
नानक बोलै सहजि सुभाइ ॥४॥
चारि पदारथ जे को मागै ॥
साध जना की सेवा लागै ॥
जे को आपुना दूखु मिटावै ॥
हरि हरि नामु रिदै सद गावै ॥
जे को अपुनी सोभा लोरै ॥
साधसंगि इह हउमै छोरै ॥
जे को जनम मरण ते डरै ॥
साध जना की सरनी परै ॥
जिसु जन कउ प्रभ दरस पिआसा ॥
नानक ता कै बलि बलि जासा ॥५॥
सगल पुरख महि पुरखु प्रधानु ॥
साधसंगि जा का मिटै अभिमानु ॥
आपस कउ जो जाणै नीचा ॥
सोऊ गनीऐ सभ ते ऊचा ॥
जा का मनु होइ सगल की रीना ॥
हरि हरि नामु तिनि घटि घटि चीना ॥
मन अपुने ते बुरा मिटाना ॥
पेखै सगल सृसटि साजना ॥
सूख दूख जन सम दृसटेता ॥
नानक पाप पुँन नही लेपा ॥६॥
निरधन कउ धनु तेरो नाउ ॥
निथावे कउ नाउ तेरा थाउ ॥
निमाने कउ प्रभ तेरो मानु ॥
सगल घटा कउ देवहु दानु ॥
करन करावनहार सुआमी ॥
सगल घटा के अंतरजामी ॥
अपनी गति मिति जानहु आपे ॥
आपन संगि आपि प्रभ राते ॥
तुम्मरी उसतति तुम ते होइ ॥
नानक अवरु न जानसि कोइ ॥७॥
सरब धरम महि स्रेसट धरमु ॥
हरि को नामु जपि निरमल करमु ॥
सगल कृआ महि ऊतम किरिआ ॥
साधसंगि दुरमति मलु हिरिआ ॥
सगल उदम महि उदमु भला ॥
हरि का नामु जपहु जीअ सदा ॥
सगल बानी महि अंमृत बानी ॥
हरि को जसु सुनि रसन बखानी ॥
सगल थान ते ओहु ऊतम थानु ॥
नानक जिह घटि वसै हरि नामु ॥८॥३॥
सलोकु ॥
निरगुनीआर इआनिआ सो प्रभु सदा समालि ॥
जिनि कीआ तिसु चीति रखु नानक निबही नालि ॥१॥
असटपदी ॥
रमईआ के गुन चेति परानी ॥
कवन मूल ते कवन दृसटानी ॥
जिनि तूँ साजि सवारि सीगारिआ ॥
गरभ अगनि महि जिनहि उबारिआ ॥
बार बिवसथा तुझहि पिआरै दूध ॥
भरि जोबन भोजन सुख सूध ॥
बिरधि भइआ ऊपरि साक सैन ॥ मुखि अपिआउ बैठ कउ दैन ॥
इहु निरगुनु गुनु कछू न बूझै ॥
बखसि लेहु तउ नानक सीझै ॥१॥
जिह प्रसादि धर ऊपरि सुखि बसहि ॥
सुत भ्रात मीत बनिता संगि हसहि ॥
जिह प्रसादि पीवहि सीतल जला ॥
सुखदाई पवनु पावकु अमुला ॥
जिह प्रसादि भोगहि सभि रसा ॥
सगल समग्री संगि साथि बसा ॥
दीने हसत पाव करन नेत्र रसना ॥
तिसहि तिआगि अवर संगि रचना ॥
ऐसे दोख मूड़ अंध बिआपे ॥
नानक काढि लेहु प्रभ आपे ॥२॥
आदि अंति जो राखनहारु ॥
तिस सिउ प्रीति न करै गवारु ॥
जा की सेवा नव निधि पावै ॥
ता सिउ मूड़ा मनु नही लावै ॥
जो ठाकुरु सद सदा हजूरे ॥
ता कउ अंधा जानत दूरे ॥
जा की टहल पावै दरगह मानु ॥
तिसहि बिसारै मुगधु अजानु ॥
सदा सदा इहु भूलनहारु ॥
नानक राखनहारु अपारु ॥३॥
रतनु तिआगि कउडी संगि रचै ॥
साचु छोडि झूठ संगि मचै ॥
जो छडना सु असथिरु करि मानै ॥
जो होवनु सो दूरि परानै ॥
छोडि जाइ तिस का स्रमु करै ॥
संगि सहाई तिसु परहरै ॥
चंदन लेपु उतारै धोइ ॥
गरधब प्रीति भसम संगि होइ ॥
अंध कूप महि पतित बिकराल ॥
नानक काढि लेहु प्रभ दइआल ॥४॥
करतूति पसू की मानस जाति ॥
लोक पचारा करै दिनु राति ॥
बाहरि भेख अंतरि मलु माइआ ॥
छपसि नाहि कछु करै छपाइआ ॥
बाहरि गिआन धिआन इसनान ॥
अंतरि बिआपै लोभु सुआनु ॥
अंतरि अगनि बाहरि तनु सुआह ॥
गलि पाथर कैसे तरै अथाह ॥
जा कै अंतरि बसै प्रभु आपि ॥
नानक ते जन सहजि समाति ॥५॥
सुनि अंधा कैसे मारगु पावै ॥
करु गहि लेहु ओड़ि निबहावै ॥
कहा बुझारति बूझै डोरा ॥
निसि कहीऐ तउ समझै भोरा ॥
कहा बिसनपद गावै गुँग ॥
जतन करै तउ भी सुर भंग ॥
कह पिंगुल परबत पर भवन ॥
नही होत ऊहा उसु गवन ॥
करतार करुणा मै दीनु बेनती करै ॥
नानक तुमरी किरपा तरै ॥६॥
संगि सहाई सु आवै न चीति ॥
जो बैराई ता सिउ प्रीति ॥
बलूआ के गृह भीतरि बसै ॥
अनद केल माइआ रंगि रसै ॥
दृड़ु करि मानै मनहि प्रतीति ॥
कालु न आवै मूड़े चीति ॥
बैर बिरोध काम क्रोध मोह ॥
झूठ बिकार महा लोभ ध्रोह ॥
इआहू जुगति बिहाने कई जनम ॥
नानक राखि लेहु आपन करि करम ॥७॥
तू ठाकुरु तुम पहि अरदासि ॥
जीउ पिंडु सभु तेरी रासि ॥
तुम मात पिता हम बारिक तेरे ॥
तुमरी कृपा महि सूख घनेरे ॥
कोइ न जानै तुमरा अंतु ॥
ऊचे ते ऊचा भगवंत ॥
सगल समग्री तुमरै सूतृ धारी ॥
तुम ते होइ सु आगिआकारी ॥
तुमरी गति मिति तुम ही जानी ॥
नानक दास सदा कुरबानी ॥८॥४॥
सलोकु ॥
देनहारु प्रभ छोडि कै लागहि आन सुआइ ॥
नानक कहू न सीझई बिनु नावै पति जाइ ॥१॥
असटपदी ॥
दस बसतू ले पाछै पावै ॥
एक बसतु कारनि बिखोटि गवावै ॥
एक भी न देइ दस भी हिरि लेइ ॥
तउ मूड़ा कहु कहा करेइ ॥
जिसु ठाकुर सिउ नाही चारा ॥
ता कउ कीजै सद नमसकारा ॥
जा कै मनि लागा प्रभु मीठा ॥
सरब सूख ताहू मनि वूठा ॥
जिसु जन अपना हुकमु मनाइआ ॥
सरब थोक नानक तिनि पाइआ ॥१॥
अगनत साहु अपनी दे रासि ॥
खात पीत बरतै अनद उलासि ॥
अपुनी अमान कछु बहुरि साहु लेइ ॥
अगिआनी मनि रोसु करेइ ॥
अपनी परतीति आप ही खोवै ॥
बहुरि उस का बिस्वासु न होवै ॥
जिस की बसतु तिसु आगै राखै ॥
प्रभ की आगिआ मानै माथै ॥
उस ते चउगुन करै निहालु ॥
नानक साहिबु सदा दइआलु ॥२॥
अनिक भाति माइआ के हेत ॥ सरपर होवत जानु अनेत ॥
बिरख की छाइआ सिउ रंगु लावै ॥
ओह बिनसै उहु मनि पछुतावै ॥
जो दीसै सो चालनहारु ॥
लपटि रहिओ तह अंध अंधारु ॥
बटाऊ सिउ जो लावै नेह ॥
ता कउ हाथि न आवै केह ॥
मन हरि के नाम की प्रीति सुखदाई ॥
करि किरपा नानक आपि लए लाई ॥३॥
मिथिआ तनु धनु कुटंबु सबाइआ ॥
मिथिआ हउमै ममता माइआ ॥
मिथिआ राज जोबन धन माल ॥
मिथिआ काम क्रोध बिकराल ॥
मिथिआ रथ हसती अस्व बसत्रा ॥
मिथिआ रंग संगि माइआ पेखि हसता ॥
मिथिआ ध्रोह मोह अभिमानु ॥
मिथिआ आपस ऊपरि करत गुमानु ॥
असथिरु भगति साध की सरन ॥
नानक जपि जपि जीवै हरि के चरन ॥४॥
मिथिआ स्रवन पर निंदा सुनहि ॥
मिथिआ हसत पर दरब कउ हिरहि ॥
मिथिआ नेत्र पेखत पर तृअ रूपाद ॥
मिथिआ रसना भोजन अन स्वाद ॥
मिथिआ चरन पर बिकार कउ धावहि ॥
मिथिआ मन पर लोभ लुभावहि ॥
मिथिआ तन नही परउपकारा ॥
मिथिआ बासु लेत बिकारा ॥
बिनु बूझे मिथिआ सभ भए ॥
सफल देह नानक हरि हरि नाम लए ॥५॥
बिरथी साकत की आरजा ॥
साच बिना कह होवत सूचा ॥
बिरथा नाम बिना तनु अंध ॥
मुखि आवत ता कै दुरगंध ॥
बिनु सिमरन दिनु रैनि बृथा बिहाइ ॥
मेघ बिना जिउ खेती जाइ ॥
गोबिद भजन बिनु बृथे सभ काम ॥
जिउ किरपन के निरारथ दाम ॥
धंनि धंनि ते जन जिह घटि बसिओ हरि नाउ ॥
नानक ता कै बलि बलि जाउ ॥६॥
रहत अवर कछु अवर कमावत ॥
मनि नही प्रीति मुखहु गंढ लावत ॥
जाननहार प्रभू परबीन ॥
बाहरि भेख न काहू भीन ॥
अवर उपदेसै आपि न करै ॥
आवत जावत जनमै मरै ॥
जिस कै अंतरि बसै निरंकारु ॥
तिस की सीख तरै संसारु ॥
जो तुम भाने तिन प्रभु जाता ॥
नानक उन जन चरन पराता ॥७॥
करउ बेनती पारब्रहमु सभु जानै ॥
अपना कीआ आपहि मानै ॥
आपहि आप आपि करत निबेरा ॥
किसै दूरि जनावत किसै बुझावत नेरा ॥
उपाव सिआनप सगल ते रहत ॥
सभु कछु जानै आतम की रहत ॥
जिसु भावै तिसु लए लड़ि लाइ ॥
थान थनंतरि रहिआ समाइ ॥
सो सेवकु जिसु किरपा करी ॥
निमख निमख जपि नानक हरी ॥८॥५॥
सलोकु ॥
काम क्रोध अरु लोभ मोह बिनसि जाइ अहंमेव ॥
नानक प्रभ सरणागती करि प्रसादु गुरदेव ॥१॥
असटपदी ॥
जिह प्रसादि छतीह अंमृत खाहि ॥
तिसु ठाकुर कउ रखु मन माहि ॥
जिह प्रसादि सुगंधत तनि लावहि ॥
तिस कउ सिमरत परम गति पावहि ॥
जिह प्रसादि बसहि सुख मंदरि ॥
तिसहि धिआइ सदा मन अंदरि ॥
जिह प्रसादि गृह संगि सुख बसना ॥
आठ पहर सिमरहु तिसु रसना ॥
जिह प्रसादि रंग रस भोग ॥
नानक सदा धिआईऐ धिआवन जोग ॥१॥
जिह प्रसादि पाट पटंबर हढावहि ॥
तिसहि तिआगि कत अवर लुभावहि ॥
जिह प्रसादि सुखि सेज सोईजै ॥
मन आठ पहर ता का जसु गावीजै ॥
जिह प्रसादि तुझु सभु कोऊ मानै ॥
मुखि ता को जसु रसन बखानै ॥
जिह प्रसादि तेरो रहता धरमु ॥
मन सदा धिआइ केवल पारब्रहमु ॥
प्रभ जी जपत दरगह मानु पावहि ॥
नानक पति सेती घरि जावहि ॥२॥
जिह प्रसादि आरोग कंचन देही ॥
लिव लावहु तिसु राम सनेही ॥
जिह प्रसादि तेरा ओला रहत ॥
मन सुखु पावहि हरि हरि जसु कहत ॥
जिह प्रसादि तेरे सगल छिद्र ढाके ॥
मन सरनी परु ठाकुर प्रभ ता कै ॥
जिह प्रसादि तुझु को न पहूचै ॥
मन सासि सासि सिमरहु प्रभ ऊचे ॥
जिह प्रसादि पाई द्रुलभ देह ॥
नानक ता की भगति करेह ॥३॥
जिह प्रसादि आभूखन पहिरीजै ॥
मन तिसु सिमरत किउ आलसु कीजै ॥
जिह प्रसादि अस्व हसति असवारी ॥
मन तिसु प्रभ कउ कबहू न बिसारी ॥
जिह प्रसादि बाग मिलख धना ॥
राखु परोइ प्रभु अपुने मना ॥
जिनि तेरी मन बनत बनाई ॥
ऊठत बैठत सद तिसहि धिआई ॥
तिसहि धिआइ जो एक अलखै ॥
ईहा ऊहा नानक तेरी रखै ॥४॥
जिह प्रसादि करहि पुँन बहु दान ॥
मन आठ पहर करि तिस का धिआन ॥
जिह प्रसादि तू आचार बिउहारी ॥
तिसु प्रभ कउ सासि सासि चितारी ॥
जिह प्रसादि तेरा सुँदर रूपु ॥
सो प्रभु सिमरहु सदा अनूपु ॥
जिह प्रसादि तेरी नीकी जाति ॥
सो प्रभु सिमरि सदा दिन राति ॥
जिह प्रसादि तेरी पति रहै ॥
गुर प्रसादि नानक जसु कहै ॥५॥
जिह प्रसादि सुनहि करन नाद ॥
जिह प्रसादि पेखहि बिसमाद ॥
जिह प्रसादि बोलहि अंमृत रसना ॥
जिह प्रसादि सुखि सहजे बसना ॥
जिह प्रसादि हसत कर चलहि ॥
जिह प्रसादि संपूरन फलहि ॥
जिह प्रसादि परम गति पावहि ॥
जिह प्रसादि सुखि सहजि समावहि ॥
ऐसा प्रभु तिआगि अवर कत लागहु ॥
गुर प्रसादि नानक मनि जागहु ॥६॥
जिह प्रसादि तूँ प्रगटु संसारि ॥
तिसु प्रभ कउ मूलि न मनहु बिसारि ॥
जिह प्रसादि तेरा परतापु ॥
रे मन मूड़ तू ता कउ जापु ॥
जिह प्रसादि तेरे कारज पूरे ॥
तिसहि जानु मन सदा हजूरे ॥
जिह प्रसादि तूँ पावहि साचु ॥
रे मन मेरे तूँ ता सिउ राचु ॥
जिह प्रसादि सभ की गति होइ ॥
नानक जापु जपै जपु सोइ ॥७॥
आपि जपाए जपै सो नाउ ॥
आपि गावाए सु हरि गुन गाउ ॥
प्रभ किरपा ते होइ प्रगासु ॥
प्रभू दइआ ते कमल बिगासु ॥
प्रभ सुप्रसंन बसै मनि सोइ ॥
प्रभ दइआ ते मति ऊतम होइ ॥
सरब निधान प्रभ तेरी मइआ ॥
आपहु कछू न किनहू लइआ ॥
जितु जितु लावहु तितु लगहि हरि नाथ ॥
नानक इन कै कछू न हाथ ॥८॥६॥
सलोकु ॥
अगम अगाधि पारब्रहमु सोइ ॥
जो जो कहै सु मुकता होइ ॥
सुनि मीता नानकु बिनवंता ॥ साध जना की अचरज कथा ॥१॥
असटपदी ॥
साध कै संगि मुख ऊजल होत ॥
साधसंगि मलु सगली खोत ॥
साध कै संगि मिटै अभिमानु ॥
साध कै संगि प्रगटै सुगिआनु ॥
साध कै संगि बुझै प्रभु नेरा ॥
साधसंगि सभु होत निबेरा ॥
साध कै संगि पाए नाम रतनु ॥
साध कै संगि एक ऊपरि जतनु ॥
साध की महिमा बरनै कउनु प्रानी ॥
नानक साध की सोभा प्रभ माहि समानी ॥१॥
साध कै संगि अगोचरु मिलै ॥
साध कै संगि सदा परफुलै ॥
साध कै संगि आवहि बसि पंचा ॥
साधसंगि अंमृत रसु भुँचा ॥
साधसंगि होइ सभ की रेन ॥
साध कै संगि मनोहर बैन ॥
साध कै संगि न कतहूँ धावै ॥
साधसंगि असथिति मनु पावै ॥
साध कै संगि माइआ ते भिंन ॥
साधसंगि नानक प्रभ सुप्रसंन ॥२॥
साधसंगि दुसमन सभि मीत ॥
साधू कै संगि महा पुनीत ॥
साधसंगि किस सिउ नही बैरु ॥
साध कै संगि न बीगा पैरु ॥
साध कै संगि नाही को मंदा ॥
साधसंगि जाने परमानंदा ॥
साध कै संगि नाही हउ तापु ॥
साध कै संगि तजै सभु आपु ॥
आपे जानै साध बडाई ॥
नानक साध प्रभू बनि आई ॥३॥
साध कै संगि न कबहू धावै ॥
साध कै संगि सदा सुखु पावै ॥
साधसंगि बसतु अगोचर लहै ॥
साधू कै संगि अजरु सहै ॥
साध कै संगि बसै थानि ऊचै ॥
साधू कै संगि महलि पहूचै ॥
साध कै संगि दृड़ै सभि धरम ॥
साध कै संगि केवल पारब्रहम ॥
साध कै संगि पाए नाम निधान ॥
नानक साधू कै कुरबान ॥४॥
साध कै संगि सभ कुल उधारै ॥
साधसंगि साजन मीत कुटंब निसतारै ॥
साधू कै संगि सो धनु पावै ॥
जिसु धन ते सभु को वरसावै ॥
साधसंगि धरम राइ करे सेवा ॥
साध कै संगि सोभा सुरदेवा ॥
साधू कै संगि पाप पलाइन ॥
साधसंगि अंमृत गुन गाइन ॥
साध कै संगि स्रब थान गंमि ॥
नानक साध कै संगि सफल जनंम ॥५॥
साध कै संगि नही कछु घाल ॥
दरसनु भेटत होत निहाल ॥
साध कै संगि कलूखत हरै ॥
साध कै संगि नरक परहरै ॥
साध कै संगि ईहा ऊहा सुहेला ॥
साधसंगि बिछुरत हरि मेला ॥
जो इछै सोई फलु पावै ॥
साध कै संगि न बिरथा जावै ॥
पारब्रहमु साध रिद बसै ॥
नानक उधरै साध सुनि रसै ॥६॥
साध कै संगि सुनउ हरि नाउ ॥
साधसंगि हरि के गुन गाउ ॥
साध कै संगि न मन ते बिसरै ॥
साधसंगि सरपर निसतरै ॥
साध कै संगि लगै प्रभु मीठा ॥
साधू कै संगि घटि घटि डीठा ॥
साधसंगि भए आगिआकारी ॥
साधसंगि गति भई हमारी ॥
साध कै संगि मिटे सभि रोग ॥
नानक साध भेटे संजोग ॥७॥
साध की महिमा बेद न जानहि ॥
जेता सुनहि तेता बखिआनहि ॥
साध की उपमा तिहु गुण ते दूरि ॥
साध की उपमा रही भरपूरि ॥
साध की सोभा का नाही अंत ॥
साध की सोभा सदा बेअंत ॥
साध की सोभा ऊच ते ऊची ॥
साध की सोभा मूच ते मूची ॥
साध की सोभा साध बनि आई ॥
नानक साध प्रभ भेदु न भाई ॥८॥७॥
सलोकु ॥
मनि साचा मुखि साचा सोइ ॥
अवरु न पेखै एकसु बिनु कोइ ॥
नानक इह लछण ब्रहम गिआनी होइ ॥१॥
असटपदी ॥
ब्रहम गिआनी सदा निरलेप ॥
जैसे जल महि कमल अलेप ॥
ब्रहम गिआनी सदा निरदोख ॥
जैसे सूरु सरब कउ सोख ॥
ब्रहम गिआनी कै दृसटि समानि ॥
जैसे राज रंक कउ लागै तुलि पवान ॥
ब्रहम गिआनी कै धीरजु एक ॥
जिउ बसुधा कोऊ खोदै कोऊ चंदन लेप ॥
ब्रहम गिआनी का इहै गुनाउ ॥
नानक जिउ पावक का सहज सुभाउ ॥१॥
ब्रहम गिआनी निरमल ते निरमला ॥
जैसे मैलु न लागै जला ॥
ब्रहम गिआनी कै मनि होइ प्रगासु ॥
जैसे धर ऊपरि आकासु ॥
ब्रहम गिआनी कै मित्र सत्रु समानि ॥
ब्रहम गिआनी कै नाही अभिमान ॥
ब्रहम गिआनी ऊच ते ऊचा ॥
मनि अपनै है सभ ते नीचा ॥
ब्रहम गिआनी से जन भए ॥
नानक जिन प्रभु आपि करेइ ॥२॥
ब्रहम गिआनी सगल की रीना ॥
आतम रसु ब्रहम गिआनी चीना ॥
ब्रहम गिआनी की सभ ऊपरि मइआ ॥
ब्रहम गिआनी ते कछु बुरा न भइआ ॥
ब्रहम गिआनी सदा समदरसी ॥
ब्रहम गिआनी की दृसटि अंमृतु बरसी ॥
ब्रहम गिआनी बंधन ते मुकता ॥
ब्रहम गिआनी की निरमल जुगता ॥
ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन ॥
नानक ब्रहम गिआनी का ब्रहम धिआनु ॥३॥
ब्रहम गिआनी एक ऊपरि आस ॥
ब्रहम गिआनी का नही बिनास ॥
ब्रहम गिआनी कै गरीबी समाहा ॥
ब्रहम गिआनी परउपकार उमाहा ॥
ब्रहम गिआनी कै नाही धंधा ॥
ब्रहम गिआनी ले धावतु बंधा ॥
ब्रहम गिआनी कै होइ सु भला ॥
ब्रहम गिआनी सुफल फला ॥
ब्रहम गिआनी संगि सगल उधारु ॥
नानक ब्रहम गिआनी जपै सगल संसारु ॥४॥
ब्रहम गिआनी कै एकै रंग ॥
ब्रहम गिआनी कै बसै प्रभु संग ॥
ब्रहम गिआनी कै नामु आधारु ॥
ब्रहम गिआनी कै नामु परवारु ॥
ब्रहम गिआनी सदा सद जागत ॥
ब्रहम गिआनी अहंबुधि तिआगत ॥
ब्रहम गिआनी कै मनि परमानंद ॥
ब्रहम गिआनी कै घरि सदा अनंद ॥
ब्रहम गिआनी सुख सहज निवास ॥
नानक ब्रहम गिआनी का नही बिनास ॥५॥
ब्रहम गिआनी ब्रहम का बेता ॥
ब्रहम गिआनी एक संगि हेता ॥
ब्रहम गिआनी कै होइ अचिंत ॥
ब्रहम गिआनी का निरमल मंत ॥
ब्रहम गिआनी जिसु करै प्रभु आपि ॥
ब्रहम गिआनी का बड परताप ॥
ब्रहम गिआनी का दरसु बडभागी पाईऐ ॥
ब्रहम गिआनी कउ बलि बलि जाईऐ ॥
ब्रहम गिआनी कउ खोजहि महेसुर ॥
नानक ब्रहम गिआनी आपि परमेसुर ॥६॥
ब्रहम गिआनी की कीमति नाहि ॥
ब्रहम गिआनी कै सगल मन माहि ॥
ब्रहम गिआनी का कउन जानै भेदु ॥
ब्रहम गिआनी कउ सदा अदेसु ॥
ब्रहम गिआनी का कथिआ न जाइ अधाख्यरु ॥
ब्रहम गिआनी सरब का ठाकुरु ॥
ब्रहम गिआनी की मिति कउनु बखानै ॥
ब्रहम गिआनी की गति ब्रहम गिआनी जानै ॥
ब्रहम गिआनी का अंतु न पारु ॥
नानक ब्रहम गिआनी कउ सदा नमसकारु ॥७॥
ब्रहम गिआनी सभ सृसटि का करता ॥
ब्रहम गिआनी सद जीवै नही मरता ॥
ब्रहम गिआनी मुकति जुगति जीअ का दाता ॥
ब्रहम गिआनी पूरन पुरखु बिधाता ॥
ब्रहम गिआनी अनाथ का नाथु ॥
ब्रहम गिआनी का सभ ऊपरि हाथु ॥
ब्रहम गिआनी का सगल अकारु ॥
ब्रहम गिआनी आपि निरंकारु ॥
ब्रहम गिआनी की सोभा ब्रहम गिआनी बनी ॥
नानक ब्रहम गिआनी सरब का धनी ॥८॥८॥
सलोकु ॥
उरि धारै जो अंतरि नामु ॥
सरब मै पेखै भगवानु ॥
निमख निमख ठाकुर नमसकारै ॥
नानक ओहु अपरसु सगल निसतारै ॥१॥
असटपदी ॥
मिथिआ नाही रसना परस ॥
मन महि प्रीति निरंजन दरस ॥
पर तृअ रूपु न पेखै नेत्र ॥
साध की टहल संतसंगि हेत ॥
करन न सुनै काहू की निंदा ॥
सभ ते जानै आपस कउ मंदा ॥
गुर प्रसादि बिखिआ परहरै ॥
मन की बासना मन ते टरै ॥
इंद्री जित पंच दोख ते रहत ॥
नानक कोटि मधे को ऐसा अपरस ॥१॥
बैसनो सो जिसु ऊपरि सुप्रसंन ॥
बिसन की माइआ ते होइ भिंन ॥
करम करत होवै निहकरम ॥
तिसु बैसनो का निरमल धरम ॥
काहू फल की इछा नही बाछै ॥
केवल भगति कीरतन संगि राचै ॥
मन तन अंतरि सिमरन गोपाल ॥
सभ ऊपरि होवत किरपाल ॥
आपि दृड़ै अवरह नामु जपावै ॥
नानक ओहु बैसनो परम गति पावै ॥२॥
भगउती भगवंत भगति का रंगु ॥
सगल तिआगै दुसट का संगु ॥
मन ते बिनसै सगला भरमु ॥
करि पूजै सगल पारब्रहमु ॥
साधसंगि पापा मलु खोवै ॥
तिसु भगउती की मति ऊतम होवै ॥
भगवंत की टहल करै नित नीति ॥
मनु तनु अरपै बिसन परीति ॥
हरि के चरन हिरदै बसावै ॥
नानक ऐसा भगउती भगवंत कउ पावै ॥३॥
सो पंडितु जो मनु परबोधै ॥
राम नामु आतम महि सोधै ॥
राम नाम सारु रसु पीवै ॥
उसु पंडित कै उपदेसि जगु जीवै ॥
हरि की कथा हिरदै बसावै ॥
सो पंडितु फिरि जोनि न आवै ॥
बेद पुरान सिमृति बूझै मूल ॥
सूखम महि जानै असथूलु ॥
चहु वरना कउ दे उपदेसु ॥
नानक उसु पंडित कउ सदा अदेसु ॥४॥
बीज मंत्रु सरब को गिआनु ॥
चहु वरना महि जपै कोऊ नामु ॥
जो जो जपै तिस की गति होइ ॥
साधसंगि पावै जनु कोइ ॥
करि किरपा अंतरि उर धारै ॥
पसु प्रेत मुघद पाथर कउ तारै ॥
सरब रोग का अउखदु नामु ॥
कलिआण रूप मंगल गुण गाम ॥
काहू जुगति कितै न पाईऐ धरमि ॥
नानक तिसु मिलै जिसु लिखिआ धुरि करमि ॥५॥
जिस कै मनि पारब्रहम का निवासु ॥
तिस का नामु सति रामदासु ॥
आतम रामु तिसु नदरी आइआ ॥
दास दसंतण भाइ तिनि पाइआ ॥
सदा निकटि निकटि हरि जानु ॥
सो दासु दरगह परवानु ॥
अपुने दास कउ आपि किरपा करै ॥
तिसु दास कउ सभ सोझी परै ॥
सगल संगि आतम उदासु ॥
ऐसी जुगति नानक रामदासु ॥६॥
प्रभ की आगिआ आतम हितावै ॥
जीवन मुकति सोऊ कहावै ॥
तैसा हरखु तैसा उसु सोगु ॥
सदा अनंदु तह नही बिओगु ॥
तैसा सुवरनु तैसी उसु माटी ॥
तैसा अंमृतु तैसी बिखु खाटी ॥
तैसा मानु तैसा अभिमानु ॥
तैसा रंकु तैसा राजानु ॥
जो वरताए साई जुगति ॥
नानक ओहु पुरखु कहीऐ जीवन मुकति ॥७॥
पारब्रहम के सगले ठाउ ॥
जितु जितु घरि राखै तैसा तिन नाउ ॥
आपे करन करावन जोगु ॥
प्रभ भावै सोई फुनि होगु ॥
पसरिओ आपि होइ अनत तरंग ॥
लखे न जाहि पारब्रहम के रंग ॥
जैसी मति देइ तैसा परगास ॥
पारब्रहमु करता अबिनास ॥
सदा सदा सदा दइआल ॥
सिमरि सिमरि नानक भए निहाल ॥८॥९॥
सलोकु ॥
उसतति करहि अनेक जन अंतु न पारावार ॥
नानक रचना प्रभि रची बहु बिधि अनिक प्रकार ॥१॥
असटपदी ॥
कई कोटि होए पूजारी ॥
कई कोटि आचार बिउहारी ॥
कई कोटि भए तीरथ वासी ॥
कई कोटि बन भ्रमहि उदासी ॥
कई कोटि बेद के स्रोते ॥
कई कोटि तपीसुर होते ॥
कई कोटि आतम धिआनु धारहि ॥
कई कोटि कबि काबि बीचारहि ॥
कई कोटि नवतन नाम धिआवहि ॥
नानक करते का अंतु न पावहि ॥१॥
कई कोटि भए अभिमानी ॥
कई कोटि अंध अगिआनी ॥
कई कोटि किरपन कठोर ॥
कई कोटि अभिग आतम निकोर ॥
कई कोटि पर दरब कउ हिरहि ॥
कई कोटि पर दूखना करहि ॥
कई कोटि माइआ स्रम माहि ॥
कई कोटि परदेस भ्रमाहि ॥
जितु जितु लावहु तितु तितु लगना ॥
नानक करते की जानै करता रचना ॥२॥
कई कोटि सिध जती जोगी ॥
कई कोटि राजे रस भोगी ॥
कई कोटि पंखी सरप उपाए ॥
कई कोटि पाथर बिरख निपजाए ॥
कई कोटि पवण पाणी बैसंतर ॥
कई कोटि देस भू मंडल ॥
कई कोटि ससीअर सूर नख्यत्र ॥
कई कोटि देव दानव इंद्र सिरि छत्र ॥
सगल समग्री अपनै सूति धारै ॥
नानक जिसु जिसु भावै तिसु तिसु निसतारै ॥३॥
कई कोटि राजस तामस सातक ॥
कई कोटि बेद पुरान सिमृति अरु सासत ॥
कई कोटि कीए रतन समुद ॥
कई कोटि नाना प्रकार जंत ॥
कई कोटि कीए चिर जीवे ॥
कई कोटि गिरी मेर सुवरन थीवे ॥
कई कोटि जख्य किंनर पिसाच ॥
कई कोटि भूत प्रेत सूकर मृगाच ॥
सभ ते नेरै सभहू ते दूरि ॥
नानक आपि अलिपतु रहिआ भरपूरि ॥४॥
कई कोटि पाताल के वासी ॥
कई कोटि नरक सुरग निवासी ॥
कई कोटि जनमहि जीवहि मरहि ॥
कई कोटि बहु जोनी फिरहि ॥
कई कोटि बैठत ही खाहि ॥
कई कोटि घालहि थकि पाहि ॥
कई कोटि कीए धनवंत ॥
कई कोटि माइआ महि चिंत ॥
जह जह भाणा तह तह राखे ॥
नानक सभु किछु प्रभ कै हाथे ॥५॥
कई कोटि भए बैरागी ॥
राम नाम संगि तिनि लिव लागी ॥
कई कोटि प्रभ कउ खोजंते ॥
आतम महि पारब्रहमु लहंते ॥
कई कोटि दरसन प्रभ पिआस ॥
तिन कउ मिलिओ प्रभु अबिनास ॥
कई कोटि मागहि सतसंगु ॥
पारब्रहम तिन लागा रंगु ॥
जिन कउ होए आपि सुप्रसंन ॥
नानक ते जन सदा धनि धंनि ॥६॥
कई कोटि खाणी अरु खंड ॥
कई कोटि अकास ब्रहमंड ॥
कई कोटि होए अवतार ॥
कई जुगति कीनो बिसथार ॥
कई बार पसरिओ पासार ॥
सदा सदा इकु एकंकार ॥
कई कोटि कीने बहु भाति ॥
प्रभ ते होए प्रभ माहि समाति ॥
ता का अंतु न जानै कोइ ॥
आपे आपि नानक प्रभु सोइ ॥७॥
कई कोटि पारब्रहम के दास ॥
तिन होवत आतम परगास ॥
कई कोटि तत के बेते ॥
सदा निहारहि एको नेत्रे ॥
कई कोटि नाम रसु पीवहि ॥
अमर भए सद सद ही जीवहि ॥
कई कोटि नाम गुन गावहि ॥
आतम रसि सुखि सहजि समावहि ॥
अपुने जन कउ सासि सासि समारे ॥
नानक ओइ परमेसुर के पिआरे ॥८॥१०॥
सलोकु ॥
करण कारण प्रभु एकु है दूसर नाही कोइ ॥
नानक तिसु बलिहारणै जलि थलि महीअलि सोइ ॥१॥
असटपदी ॥
करन करावन करनै जोगु ॥
जो तिसु भावै सोई होगु ॥
खिन महि थापि उथापनहारा ॥
अंतु नही किछु पारावारा ॥
हुकमे धारि अधर रहावै ॥
हुकमे उपजै हुकमि समावै ॥
हुकमे ऊच नीच बिउहार ॥
हुकमे अनिक रंग परकार ॥
करि करि देखै अपनी वडिआई ॥
नानक सभ महि रहिआ समाई ॥१॥
प्रभ भावै मानुख गति पावै ॥
प्रभ भावै ता पाथर तरावै ॥
प्रभ भावै बिनु सास ते राखै ॥
प्रभ भावै ता हरि गुण भाखै ॥
प्रभ भावै ता पतित उधारै ॥
आपि करै आपन बीचारै ॥
दुहा सिरिआ का आपि सुआमी ॥
खेलै बिगसै अंतरजामी ॥
जो भावै सो कार करावै ॥
नानक दृसटी अवरु न आवै ॥२॥
कहु मानुख ते किआ होइ आवै ॥
जो तिसु भावै सोई करावै ॥
इस कै हाथि होइ ता सभु किछु लेइ ॥
जो तिसु भावै सोई करेइ ॥
अनजानत बिखिआ महि रचै ॥
जे जानत आपन आप बचै ॥
भरमे भूला दह दिसि धावै ॥
निमख माहि चारि कुँट फिरि आवै ॥
करि किरपा जिसु अपनी भगति देइ ॥
नानक ते जन नामि मिलेइ ॥३॥
खिन महि नीच कीट कउ राज ॥
पारब्रहम गरीब निवाज ॥
जा का दृसटि कछू न आवै ॥
तिसु ततकाल दह दिस प्रगटावै ॥
जा कउ अपुनी करै बखसीस ॥
ता का लेखा न गनै जगदीस ॥
जीउ पिंडु सभ तिस की रासि ॥
घटि घटि पूरन ब्रहम प्रगास ॥
अपनी बणत आपि बनाई ॥
नानक जीवै देखि बडाई ॥४॥
इस का बलु नाही इसु हाथ ॥
करन करावन सरब को नाथ ॥
आगिआकारी बपुरा जीउ ॥
जो तिसु भावै सोई फुनि थीउ ॥
कबहू ऊच नीच महि बसै ॥
कबहू सोग हरख रंगि हसै ॥
कबहू निंद चिंद बिउहार ॥
कबहू ऊभ अकास पइआल ॥
कबहू बेता ब्रहम बीचार ॥
नानक आपि मिलावणहार ॥५॥
कबहू निरति करै बहु भाति ॥
कबहू सोइ रहै दिनु राति ॥
कबहू महा क्रोध बिकराल ॥
कबहूँ सरब की होत रवाल ॥
कबहू होइ बहै बड राजा ॥
कबहु भेखारी नीच का साजा ॥
कबहू अपकीरति महि आवै ॥
कबहू भला भला कहावै ॥
जिउ प्रभु राखै तिव ही रहै ॥
गुर प्रसादि नानक सचु कहै ॥६॥
कबहू होइ पंडितु करे बख्यानु ॥
कबहू मोनिधारी लावै धिआनु ॥
कबहू तट तीरथ इसनान ॥
कबहू सिध साधिक मुखि गिआन ॥
कबहू कीट हसति पतंग होइ जीआ ॥
अनिक जोनि भरमै भरमीआ ॥
नाना रूप जिउ स्वागी दिखावै ॥
जिउ प्रभ भावै तिवै नचावै ॥
जो तिसु भावै सोई होइ ॥
नानक दूजा अवरु न कोइ ॥७॥
कबहू साधसंगति इहु पावै ॥
उसु असथान ते बहुरि न आवै ॥
अंतरि होइ गिआन परगासु ॥
उसु असथान का नही बिनासु ॥
मन तन नामि रते इक रंगि ॥
सदा बसहि पारब्रहम कै संगि ॥
जिउ जल महि जलु आइ खटाना ॥
तिउ जोती संगि जोति समाना ॥
मिटि गए गवन पाए बिस्राम ॥
नानक प्रभ कै सद कुरबान ॥८॥११॥
सलोकु ॥
सुखी बसै मसकीनीआ आपु निवारि तले ॥
बडे बडे अहंकारीआ नानक गरबि गले ॥१॥
असटपदी ॥
जिस कै अंतरि राज अभिमानु ॥
सो नरकपाती होवत सुआनु ॥
जो जानै मै जोबनवंतु ॥
सो होवत बिसटा का जंतु ॥
आपस कउ करमवंतु कहावै ॥
जनमि मरै बहु जोनि भ्रमावै ॥
धन भूमि का जो करै गुमानु ॥
सो मूरखु अंधा अगिआनु ॥
करि किरपा जिस कै हिरदै गरीबी बसावै ॥
नानक ईहा मुकतु आगै सुखु पावै ॥१॥
धनवंता होइ करि गरबावै ॥
तृण समानि कछु संगि न जावै ॥
बहु लसकर मानुख ऊपरि करे आस ॥
पल भीतरि ता का होइ बिनास ॥
सभ ते आप जानै बलवंतु ॥
खिन महि होइ जाइ भसमंतु ॥
किसै न बदै आपि अहंकारी ॥
धरम राइ तिसु करे खुआरी ॥
गुर प्रसादि जा का मिटै अभिमानु ॥
सो जनु नानक दरगह परवानु ॥२॥
कोटि करम करै हउ धारे ॥
स्रमु पावै सगले बिरथारे ॥
अनिक तपसिआ करे अहंकार ॥
नरक सुरग फिरि फिरि अवतार ॥
अनिक जतन करि आतम नही द्रवै ॥
हरि दरगह कहु कैसे गवै ॥
आपस कउ जो भला कहावै ॥
तिसहि भलाई निकटि न आवै ॥
सरब की रेन जा का मनु होइ ॥
कहु नानक ता की निरमल सोइ ॥३॥
जब लगु जानै मुझ ते कछु होइ ॥
तब इस कउ सुखु नाही कोइ ॥
जब इह जानै मै किछु करता ॥
तब लगु गरभ जोनि महि फिरता ॥
जब धारै कोऊ बैरी मीतु ॥
तब लगु निहचलु नाही चीतु ॥
जब लगु मोह मगन संगि माइ ॥
तब लगु धरम राइ देइ सजाइ ॥
प्रभ किरपा ते बंधन तूटै ॥
गुर प्रसादि नानक हउ छूटै ॥४॥
सहस खटे लख कउ उठि धावै ॥
तृपति न आवै माइआ पाछै पावै ॥
अनिक भोग बिखिआ के करै ॥
नह तृपतावै खपि खपि मरै ॥
बिना संतोख नही कोऊ राजै ॥
सुपन मनोरथ बृथे सभ काजै ॥
नाम रंगि सरब सुखु होइ ॥
बडभागी किसै परापति होइ ॥
करन करावन आपे आपि ॥
सदा सदा नानक हरि जापि ॥५॥
करन करावन करनैहारु ॥
इस कै हाथि कहा बीचारु ॥
जैसी दृसटि करे तैसा होइ ॥
आपे आपि आपि प्रभु सोइ ॥
जो किछु कीनो सु अपनै रंगि ॥
सभ ते दूरि सभहू कै संगि ॥
बूझै देखै करै बिबेक ॥
आपहि एक आपहि अनेक ॥
मरै न बिनसै आवै न जाइ ॥
नानक सद ही रहिआ समाइ ॥६॥
आपि उपदेसै समझै आपि ॥
आपे रचिआ सभ कै साथि ॥
आपि कीनो आपन बिसथारु ॥
सभु कछु उस का ओहु करनैहारु ॥
उस ते भिंन कहहु किछु होइ ॥
थान थनंतरि एकै सोइ ॥
अपुने चलित आपि करणैहार ॥
कउतक करै रंग आपार ॥
मन महि आपि मन अपुने माहि ॥
नानक कीमति कहनु न जाइ ॥७॥
सति सति सति प्रभु सुआमी ॥
गुर परसादि किनै वखिआनी ॥
सचु सचु सचु सभु कीना ॥
कोटि मधे किनै बिरलै चीना ॥
भला भला भला तेरा रूप ॥
अति सुँदर अपार अनूप ॥
निरमल निरमल निरमल तेरी बाणी ॥
घटि घटि सुनी स्रवन बख्याणी ॥
पवित्र पवित्र पवित्र पुनीत ॥
नामु जपै नानक मनि प्रीति ॥८॥१२॥
सलोकु ॥
संत सरनि जो जनु परै सो जनु उधरनहार ॥
संत की निंदा नानका बहुरि बहुरि अवतार ॥१॥
असटपदी ॥
संत कै दूखनि आरजा घटै ॥
संत कै दूखनि जम ते नही छुटै ॥
संत कै दूखनि सुखु सभु जाइ ॥
संत कै दूखनि नरक महि पाइ ॥
संत कै दूखनि मति होइ मलीन ॥
संत कै दूखनि सोभा ते हीन ॥
संत के हते कउ रखै न कोइ ॥
संत कै दूखनि थान भ्रसटु होइ ॥
संत कृपाल कृपा जे करै ॥
नानक संतसंगि निंदकु भी तरै ॥१॥
संत के दूखन ते मुखु भवै ॥
संतन कै दूखनि काग जिउ लवै ॥
संतन कै दूखनि सरप जोनि पाइ ॥
संत कै दूखनि तृगद जोनि किरमाइ ॥
संतन कै दूखनि तृसना महि जलै ॥
संत कै दूखनि सभु को छलै ॥
संत कै दूखनि तेजु सभु जाइ ॥
संत कै दूखनि नीचु नीचाइ ॥
संत दोखी का थाउ को नाहि ॥
नानक संत भावै ता ओइ भी गति पाहि ॥२॥
संत का निंदकु महा अतताई ॥
संत का निंदकु खिनु टिकनु न पाई ॥
संत का निंदकु महा हतिआरा ॥
संत का निंदकु परमेसुरि मारा ॥
संत का निंदकु राज ते हीनु ॥
संत का निंदकु दुखीआ अरु दीनु ॥
संत के निंदक कउ सरब रोग ॥
संत के निंदक कउ सदा बिजोग ॥
संत की निंदा दोख महि दोखु ॥
नानक संत भावै ता उस का भी होइ मोखु ॥३॥
संत का दोखी सदा अपवितु ॥
संत का दोखी किसै का नही मितु ॥
संत के दोखी कउ डानु लागै ॥
संत के दोखी कउ सभ तिआगै ॥
संत का दोखी महा अहंकारी ॥
संत का दोखी सदा बिकारी ॥
संत का दोखी जनमै मरै ॥
संत की दूखना सुख ते टरै ॥
संत के दोखी कउ नाही ठाउ ॥
नानक संत भावै ता लए मिलाइ ॥४॥
संत का दोखी अध बीच ते टूटै ॥
संत का दोखी कितै काजि न पहूचै ॥
संत के दोखी कउ उदिआन भ्रमाईऐ ॥
संत का दोखी उझड़ि पाईऐ ॥
संत का दोखी अंतर ते थोथा ॥
जिउ सास बिना मिरतक की लोथा ॥
संत के दोखी की जड़ किछु नाहि ॥
आपन बीजि आपे ही खाहि ॥
संत के दोखी कउ अवरु न राखनहारु ॥
नानक संत भावै ता लए उबारि ॥५॥
संत का दोखी इउ बिललाइ ॥
जिउ जल बिहून मछुली तड़फड़ाइ ॥
संत का दोखी भूखा नही राजै ॥
जिउ पावकु ईधनि नही ध्रापै ॥
संत का दोखी छुटै इकेला ॥
जिउ बूआड़ु तिलु खेत माहि दुहेला ॥
संत का दोखी धरम ते रहत ॥
संत का दोखी सद मिथिआ कहत ॥
किरतु निंदक का धुरि ही पइआ ॥
नानक जो तिसु भावै सोई थिआ ॥६॥
संत का दोखी बिगड़ रूपु होइ जाइ ॥
संत के दोखी कउ दरगह मिलै सजाइ ॥
संत का दोखी सदा सहकाईऐ ॥
संत का दोखी न मरै न जीवाईऐ ॥
संत के दोखी की पुजै न आसा ॥
संत का दोखी उठि चलै निरासा ॥
संत कै दोखि न तृसटै कोइ ॥
जैसा भावै तैसा कोई होइ ॥
पइआ किरतु न मेटै कोइ ॥
नानक जानै सचा सोइ ॥७॥
सभ घट तिस के ओहु करनैहारु ॥
सदा सदा तिस कउ नमसकारु ॥
प्रभ की उसतति करहु दिनु राति ॥
तिसहि धिआवहु सासि गिरासि ॥
सभु कछु वरतै तिस का कीआ ॥
जैसा करे तैसा को थीआ ॥
अपना खेलु आपि करनैहारु ॥
दूसर कउनु कहै बीचारु ॥
जिस नो कृपा करै तिसु आपन नामु देइ ॥
बडभागी नानक जन सेइ ॥८॥१३॥
सलोकु ॥
तजहु सिआनप सुरि जनहु सिमरहु हरि हरि राइ ॥
एक आस हरि मनि रखहु नानक दूखु भरमु भउ जाइ ॥१॥
असटपदी ॥
मानुख की टेक बृथी सभ जानु ॥
देवन कउ एकै भगवानु ॥
जिस कै दीऐ रहै अघाइ ॥
बहुरि न तृसना लागै आइ ॥
मारै राखै एको आपि ॥
मानुख कै किछु नाही हाथि ॥
तिस का हुकमु बूझि सुखु होइ ॥
तिस का नामु रखु कंठि परोइ ॥
सिमरि सिमरि सिमरि प्रभु सोइ ॥
नानक बिघनु न लागै कोइ ॥१॥
उसतति मन महि करि निरंकार ॥
करि मन मेरे सति बिउहार ॥
निरमल रसना अंमृतु पीउ ॥
सदा सुहेला करि लेहि जीउ ॥
नैनहु पेखु ठाकुर का रंगु ॥
साधसंगि बिनसै सभ संगु ॥
चरन चलउ मारगि गोबिंद ॥
मिटहि पाप जपीऐ हरि बिंद ॥
कर हरि करम स्रवनि हरि कथा ॥
हरि दरगह नानक ऊजल मथा ॥२॥
बडभागी ते जन जग माहि ॥
सदा सदा हरि के गुन गाहि ॥
राम नाम जो करहि बीचार ॥
से धनवंत गनी संसार ॥
मनि तनि मुखि बोलहि हरि मुखी ॥
सदा सदा जानहु ते सुखी ॥
एको एकु एकु पछानै ॥
इत उत की ओहु सोझी जानै ॥
नाम संगि जिस का मनु मानिआ ॥
नानक तिनहि निरंजनु जानिआ ॥३॥
गुर प्रसादि आपन आपु सुझै ॥
तिस की जानहु तृसना बुझै ॥
साधसंगि हरि हरि जसु कहत ॥
सरब रोग ते ओहु हरि जनु रहत ॥
अनदिनु कीरतनु केवल बख्यानु ॥
गृहसत महि सोई निरबानु ॥
एक ऊपरि जिसु जन की आसा ॥
तिस की कटीऐ जम की फासा ॥
पारब्रहम की जिसु मनि भूख ॥
नानक तिसहि न लागहि दूख ॥४॥
जिस कउ हरि प्रभु मनि चिति आवै ॥
सो संतु सुहेला नही डुलावै ॥
जिसु प्रभु अपुना किरपा करै ॥
सो सेवकु कहु किस ते डरै ॥
जैसा सा तैसा दृसटाइआ ॥
अपुने कारज महि आपि समाइआ ॥
सोधत सोधत सोधत सीझिआ ॥
गुर प्रसादि ततु सभु बूझिआ ॥
जब देखउ तब सभु किछु मूलु ॥
नानक सो सूखमु सोई असथूलु ॥५॥
नह किछु जनमै नह किछु मरै ॥
आपन चलितु आप ही करै ॥
आवनु जावनु दृसटि अनदृसटि ॥
आगिआकारी धारी सभ सृसटि ॥
आपे आपि सगल महि आपि ॥
अनिक जुगति रचि थापि उथापि ॥
अबिनासी नाही किछु खंड ॥
धारण धारि रहिओ ब्रहमंड ॥
अलख अभेव पुरख परताप ॥
आपि जपाए त नानक जाप ॥६॥
जिन प्रभु जाता सु सोभावंत ॥
सगल संसारु उधरै तिन मंत ॥
प्रभ के सेवक सगल उधारन ॥
प्रभ के सेवक दूख बिसारन ॥
आपे मेलि लए किरपाल ॥
गुर का सबदु जपि भए निहाल ॥
उन की सेवा सोई लागै ॥
जिस नो कृपा करहि बडभागै ॥
नामु जपत पावहि बिस्रामु ॥
नानक तिन पुरख कउ ऊतम करि मानु ॥७॥
जो किछु करै सु प्रभ कै रंगि ॥
सदा सदा बसै हरि संगि ॥
सहज सुभाइ होवै सो होइ ॥
करणैहारु पछाणै सोइ ॥
प्रभ का कीआ जन मीठ लगाना ॥
जैसा सा तैसा दृसटाना ॥
जिस ते उपजे तिसु माहि समाए ॥
ओइ सुख निधान उनहू बनि आए ॥
आपस कउ आपि दीनो मानु ॥
नानक प्रभ जनु एको जानु ॥८॥१४॥
सलोकु ॥
सरब कला भरपूर प्रभ बिरथा जाननहार ॥
जा कै सिमरनि उधरीऐ नानक तिसु बलिहार ॥१॥
असटपदी ॥
टूटी गाढनहार गुोपाल ॥
सरब जीआ आपे प्रतिपाल ॥
सगल की चिंता जिसु मन माहि ॥
तिस ते बिरथा कोई नाहि ॥
रे मन मेरे सदा हरि जापि ॥
अबिनासी प्रभु आपे आपि ॥
आपन कीआ कछू न होइ ॥
जे सउ प्रानी लोचै कोइ ॥
तिसु बिनु नाही तेरै किछु काम ॥
गति नानक जपि एक हरि नाम ॥१॥
रूपवंतु होइ नाही मोहै ॥
प्रभ की जोति सगल घट सोहै ॥
धनवंता होइ किआ को गरबै ॥
जा सभु किछु तिस का दीआ दरबै ॥
अति सूरा जे कोऊ कहावै ॥
प्रभ की कला बिना कह धावै ॥
जे को होइ बहै दातारु ॥
तिसु देनहारु जानै गावारु ॥
जिसु गुर प्रसादि तूटै हउ रोगु ॥
नानक सो जनु सदा अरोगु ॥२॥
जिउ मंदर कउ थामै थंमनु ॥
तिउ गुर का सबदु मनहि असथंमनु ॥
जिउ पाखाणु नाव चड़ि तरै ॥
प्राणी गुर चरण लगतु निसतरै ॥
जिउ अंधकार दीपक परगासु ॥
गुर दरसनु देखि मनि होइ बिगासु ॥
जिउ महा उदिआन महि मारगु पावै ॥ तिउ साधू संगि मिलि जोति प्रगटावै ॥
तिन संतन की बाछउ धूरि ॥
नानक की हरि लोचा पूरि ॥३॥
मन मूरख काहे बिललाईऐ ॥
पुरब लिखे का लिखिआ पाईऐ ॥
दूख सूख प्रभ देवनहारु ॥
अवर तिआगि तू तिसहि चितारु ॥
जो कछु करै सोई सुखु मानु ॥
भूला काहे फिरहि अजान ॥
कउन बसतु आई तेरै संग ॥
लपटि रहिओ रसि लोभी पतंग ॥
राम नाम जपि हिरदे माहि ॥
नानक पति सेती घरि जाहि ॥४॥
जिसु वखर कउ लैनि तू आइआ ॥
राम नामु संतन घरि पाइआ ॥
तजि अभिमानु लेहु मन मोलि ॥ राम नामु हिरदे महि तोलि ॥
लादि खेप संतह संगि चालु ॥
अवर तिआगि बिखिआ जंजाल ॥
धंनि धंनि कहै सभु कोइ ॥
मुख ऊजल हरि दरगह सोइ ॥
इहु वापारु विरला वापारै ॥
नानक ता कै सद बलिहारै ॥५॥
चरन साध के धोइ धोइ पीउ ॥
अरपि साध कउ अपना जीउ ॥
साध की धूरि करहु इसनानु ॥
साध ऊपरि जाईऐ कुरबानु ॥
साध सेवा वडभागी पाईऐ ॥
साधसंगि हरि कीरतनु गाईऐ ॥
अनिक बिघन ते साधू राखै ॥
हरि गुन गाइ अंमृत रसु चाखै ॥
ओट गही संतह दरि आइआ ॥
सरब सूख नानक तिह पाइआ ॥६॥
मिरतक कउ जीवालनहार ॥
भूखे कउ देवत अधार ॥
सरब निधान जा की दृसटी माहि ॥
पुरब लिखे का लहणा पाहि ॥
सभु किछु तिस का ओहु करनै जोगु ॥
तिसु बिनु दूसर होआ न होगु ॥
जपि जन सदा सदा दिनु रैणी ॥
सभ ते ऊच निरमल इह करणी ॥
करि किरपा जिस कउ नामु दीआ ॥
नानक सो जनु निरमलु थीआ ॥७॥
जा कै मनि गुर की परतीति ॥
तिसु जन आवै हरि प्रभु चीति ॥
भगतु भगतु सुनीऐ तिहु लोइ ॥
जा कै हिरदै एको होइ ॥
सचु करणी सचु ता की रहत ॥
सचु हिरदै सति मुखि कहत ॥
साची दृसटि साचा आकारु ॥
सचु वरतै साचा पासारु ॥
पारब्रहमु जिनि सचु करि जाता ॥
नानक सो जनु सचि समाता ॥८॥१५॥
सलोकु ॥
रूपु न रेख न रंगु किछु तृहु गुण ते प्रभ भिंन ॥
तिसहि बुझाए नानका जिसु होवै सुप्रसंन ॥१॥
असटपदी ॥
अबिनासी प्रभु मन महि राखु ॥
मानुख की तू प्रीति तिआगु ॥
तिस ते परै नाही किछु कोइ ॥
सरब निरंतरि एको सोइ ॥
आपे बीना आपे दाना ॥
गहिर गंभीरु गहीरु सुजाना ॥
पारब्रहम परमेसुर गोबिंद ॥
कृपा निधान दइआल बखसंद ॥
साध तेरे की चरनी पाउ ॥
नानक कै मनि इहु अनराउ ॥१॥
मनसा पूरन सरना जोग ॥
जो करि पाइआ सोई होगु ॥
हरन भरन जा का नेत्र फोरु ॥
तिस का मंत्रु न जानै होरु ॥
अनद रूप मंगल सद जा कै ॥
सरब थोक सुनीअहि घरि ता कै ॥
राज महि राजु जोग महि जोगी ॥
तप महि तपीसरु गृहसत महि भोगी ॥
धिआइ धिआइ भगतह सुखु पाइआ ॥
नानक तिसु पुरख का किनै अंतु न पाइआ ॥२॥
जा की लीला की मिति नाहि ॥
सगल देव हारे अवगाहि ॥
पिता का जनमु कि जानै पूतु ॥
सगल परोई अपुनै सूति ॥
सुमति गिआनु धिआनु जिन देइ ॥ जन दास नामु धिआवहि सेइ ॥
तिहु गुण महि जा कउ भरमाए ॥
जनमि मरै फिरि आवै जाए ॥
ऊच नीच तिस के असथान ॥
जैसा जनावै तैसा नानक जान ॥३॥
नाना रूप नाना जा के रंग ॥
नाना भेख करहि इक रंग ॥
नाना बिधि कीनो बिसथारु ॥
प्रभु अबिनासी एकंकारु ॥
नाना चलित करे खिन माहि ॥
पूरि रहिओ पूरनु सभ ठाइ ॥
नाना बिधि करि बनत बनाई ॥
अपनी कीमति आपे पाई ॥
सभ घट तिस के सभ तिस के ठाउ ॥
जपि जपि जीवै नानक हरि नाउ ॥४॥
नाम के धारे सगले जंत ॥
नाम के धारे खंड ब्रहमंड ॥
नाम के धारे सिमृति बेद पुरान ॥
नाम के धारे सुनन गिआन धिआन ॥
नाम के धारे आगास पाताल ॥
नाम के धारे सगल आकार ॥
नाम के धारे पुरीआ सभ भवन ॥
नाम कै संगि उधरे सुनि स्रवन ॥
करि किरपा जिसु आपनै नामि लाए ॥
नानक चउथे पद महि सो जनु गति पाए ॥५॥
रूपु सति जा का सति असथानु ॥
पुरखु सति केवल परधानु ॥
करतूति सति सति जा की बाणी ॥
सति पुरख सभ माहि समाणी ॥
सति करमु जा की रचना सति ॥
मूलु सति सति उतपति ॥
सति करणी निरमल निरमली ॥
जिसहि बुझाए तिसहि सभ भली ॥
सति नामु प्रभ का सुखदाई ॥
बिस्वासु सति नानक गुर ते पाई ॥६॥
सति बचन साधू उपदेस ॥
सति ते जन जा कै रिदै प्रवेस ॥
सति निरति बूझै जे कोइ ॥
नामु जपत ता की गति होइ ॥
आपि सति कीआ सभु सति ॥
आपे जानै अपनी मिति गति ॥
जिस की सृसटि सु करणैहारु ॥
अवर न बूझि करत बीचारु ॥
करते की मिति न जानै कीआ ॥
नानक जो तिसु भावै सो वरतीआ ॥७॥
बिसमन बिसम भए बिसमाद ॥
जिनि बूझिआ तिसु आइआ स्वाद ॥
प्रभ कै रंगि राचि जन रहे ॥
गुर कै बचनि पदारथ लहे ॥
ओइ दाते दुख काटनहार ॥
जा कै संगि तरै संसार ॥
जन का सेवकु सो वडभागी ॥
जन कै संगि एक लिव लागी ॥
गुन गोबिद कीरतनु जनु गावै ॥
गुर प्रसादि नानक फलु पावै ॥८॥१६॥
सलोकु ॥
आदि सचु जुगादि सचु ॥
है भि सचु नानक होसी भि सचु ॥१॥
असटपदी ॥
चरन सति सति परसनहार ॥
पूजा सति सति सेवदार ॥
दरसनु सति सति पेखनहार ॥
नामु सति सति धिआवनहार ॥
आपि सति सति सभ धारी ॥
आपे गुण आपे गुणकारी ॥
सबदु सति सति प्रभु बकता ॥
सुरति सति सति जसु सुनता ॥
बुझनहार कउ सति सभ होइ ॥
नानक सति सति प्रभु सोइ ॥१॥
सति सरूपु रिदै जिनि मानिआ ॥
करन करावन तिनि मूलु पछानिआ ॥
जा कै रिदै बिस्वासु प्रभ आइआ ॥
ततु गिआनु तिसु मनि प्रगटाइआ ॥
भै ते निरभउ होइ बसाना ॥
जिस ते उपजिआ तिसु माहि समाना ॥
बसतु माहि ले बसतु गडाई ॥
ता कउ भिंन न कहना जाई ॥
बूझै बूझनहारु बिबेक ॥
नाराइन मिले नानक एक ॥२॥
ठाकुर का सेवकु आगिआकारी ॥
ठाकुर का सेवकु सदा पूजारी ॥
ठाकुर के सेवक कै मनि परतीति ॥
ठाकुर के सेवक की निरमल रीति ॥
ठाकुर कउ सेवकु जानै संगि ॥
प्रभ का सेवकु नाम कै रंगि ॥
सेवक कउ प्रभ पालनहारा ॥
सेवक की राखै निरंकारा ॥
सो सेवकु जिसु दइआ प्रभु धारै ॥
नानक सो सेवकु सासि सासि समारै ॥३॥
अपुने जन का परदा ढाकै ॥
अपने सेवक की सरपर राखै ॥
अपने दास कउ देइ वडाई ॥
अपने सेवक कउ नामु जपाई ॥
अपने सेवक की आपि पति राखै ॥
ता की गति मिति कोइ न लाखै ॥
प्रभ के सेवक कउ को न पहूचै ॥
प्रभ के सेवक ऊच ते ऊचे ॥
जो प्रभि अपनी सेवा लाइआ ॥
नानक सो सेवकु दह दिसि प्रगटाइआ ॥४॥
नीकी कीरी महि कल राखै ॥
भसम करै लसकर कोटि लाखै ॥
जिस का सासु न काढत आपि ॥
ता कउ राखत दे करि हाथ ॥
मानस जतन करत बहु भाति ॥
तिस के करतब बिरथे जाति ॥
मारै न राखै अवरु न कोइ ॥
सरब जीआ का राखा सोइ ॥
काहे सोच करहि रे प्राणी ॥
जपि नानक प्रभ अलख विडाणी ॥५॥
बारं बार बार प्रभु जपीऐ ॥
पी अंमृतु इहु मनु तनु ध्रपीऐ ॥
नाम रतनु जिनि गुरमुखि पाइआ ॥
तिसु किछु अवरु नाही दृसटाइआ ॥
नामु धनु नामो रूपु रंगु ॥
नामो सुखु हरि नाम का संगु ॥
नाम रसि जो जन तृपताने ॥
मन तन नामहि नामि समाने ॥
ऊठत बैठत सोवत नाम ॥
कहु नानक जन कै सद काम ॥६॥
बोलहु जसु जिहबा दिनु राति ॥
प्रभि अपनै जन कीनी दाति ॥
करहि भगति आतम कै चाइ ॥
प्रभ अपने सिउ रहहि समाइ ॥
जो होआ होवत सो जानै ॥
प्रभ अपने का हुकमु पछानै ॥
तिस की महिमा कउन बखानउ ॥
तिस का गुनु कहि एक न जानउ ॥
आठ पहर प्रभ बसहि हजूरे ॥
कहु नानक सेई जन पूरे ॥७॥
मन मेरे तिन की ओट लेहि ॥
मनु तनु अपना तिन जन देहि ॥
जिनि जनि अपना प्रभू पछाता ॥
सो जनु सरब थोक का दाता ॥
तिस की सरनि सरब सुख पावहि ॥
तिस कै दरसि सभ पाप मिटावहि ॥
अवर सिआनप सगली छाडु ॥
तिसु जन की तू सेवा लागु ॥
आवनु जानु न होवी तेरा ॥
नानक तिसु जन के पूजहु सद पैरा ॥८॥१७॥
सलोकु ॥
सति पुरखु जिनि जानिआ सतिगुरु तिस का नाउ ॥
तिस कै संगि सिखु उधरै नानक हरि गुन गाउ ॥१॥
असटपदी ॥
सतिगुरु सिख की करै प्रतिपाल ॥
सेवक कउ गुरु सदा दइआल ॥
सिख की गुरु दुरमति मलु हिरै ॥
गुर बचनी हरि नामु उचरै ॥
सतिगुरु सिख के बंधन काटै ॥
गुर का सिखु बिकार ते हाटै ॥
सतिगुरु सिख कउ नाम धनु देइ ॥
गुर का सिखु वडभागी हे ॥
सतिगुरु सिख का हलतु पलतु सवारै ॥
नानक सतिगुरु सिख कउ जीअ नालि समारै ॥१॥
गुर कै गृहि सेवकु जो रहै ॥
गुर की आगिआ मन महि सहै ॥
आपस कउ करि कछु न जनावै ॥
हरि हरि नामु रिदै सद धिआवै ॥
मनु बेचै सतिगुर कै पासि ॥
तिसु सेवक के कारज रासि ॥
सेवा करत होइ निहकामी ॥
तिस कउ होत परापति सुआमी ॥
अपनी कृपा जिसु आपि करेइ ॥
नानक सो सेवकु गुर की मति लेइ ॥२॥
बीस बिसवे गुर का मनु मानै ॥
सो सेवकु परमेसुर की गति जानै ॥
सो सतिगुरु जिसु रिदै हरि नाउ ॥
अनिक बार गुर कउ बलि जाउ ॥
सरब निधान जीअ का दाता ॥
आठ पहर पारब्रहम रंगि राता ॥
ब्रहम महि जनु जन महि पारब्रहमु ॥
एकहि आपि नही कछु भरमु ॥
सहस सिआनप लइआ न जाईऐ ॥
नानक ऐसा गुरु बडभागी पाईऐ ॥३॥
सफल दरसनु पेखत पुनीत ॥
परसत चरन गति निरमल रीति ॥
भेटत संगि राम गुन रवे ॥
पारब्रहम की दरगह गवे ॥
सुनि करि बचन करन आघाने ॥
मनि संतोखु आतम पतीआने ॥
पूरा गुरु अख्यओ जा का मंत्र ॥
अंमृत दृसटि पेखै होइ संत ॥
गुण बिअंत कीमति नही पाइ ॥
नानक जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ॥४॥
जिहबा एक उसतति अनेक ॥
सति पुरख पूरन बिबेक ॥ काहू बोल न पहुचत प्रानी ॥
अगम अगोचर प्रभ निरबानी ॥
निराहार निरवैर सुखदाई ॥
ता की कीमति किनै न पाई ॥
अनिक भगत बंदन नित करहि ॥
चरन कमल हिरदै सिमरहि ॥
सद बलिहारी सतिगुर अपने ॥
नानक जिसु प्रसादि ऐसा प्रभु जपने ॥५॥
इहु हरि रसु पावै जनु कोइ ॥
अंमृतु पीवै अमरु सो होइ ॥
उसु पुरख का नाही कदे बिनास ॥ जा कै मनि प्रगटे गुनतास ॥
आठ पहर हरि का नामु लेइ ॥
सचु उपदेसु सेवक कउ देइ ॥
मोह माइआ कै संगि न लेपु ॥
मन महि राखै हरि हरि एकु ॥
अंधकार दीपक परगासे ॥
नानक भरम मोह दुख तह ते नासे ॥६॥
तपति माहि ठाढि वरताई ॥
अनदु भइआ दुख नाठे भाई ॥
जनम मरन के मिटे अंदेसे ॥
साधू के पूरन उपदेसे ॥
भउ चूका निरभउ होइ बसे ॥
सगल बिआधि मन ते खै नसे ॥
जिस का सा तिनि किरपा धारी ॥
साधसंगि जपि नामु मुरारी ॥
थिति पाई चूके भ्रम गवन ॥
सुनि नानक हरि हरि जसु स्रवन ॥७॥
निरगुनु आपि सरगुनु भी ओही ॥
कला धारि जिनि सगली मोही ॥
अपने चरित प्रभि आपि बनाए ॥
अपुनी कीमति आपे पाए ॥
हरि बिनु दूजा नाही कोइ ॥
सरब निरंतरि एको सोइ ॥
ओति पोति रविआ रूप रंग ॥
भए प्रगास साध कै संग ॥
रचि रचना अपनी कल धारी ॥
अनिक बार नानक बलिहारी ॥८॥१८॥
सलोकु ॥
साथि न चालै बिनु भजन बिखिआ सगली छारु ॥
हरि हरि नामु कमावना नानक इहु धनु सारु ॥१॥
असटपदी ॥
संत जना मिलि करहु बीचारु ॥
एकु सिमरि नाम आधारु ॥
अवरि उपाव सभि मीत बिसारहु ॥
चरन कमल रिद महि उरि धारहु ॥
करन कारन सो प्रभु समरथु ॥
दृड़ु करि गहहु नामु हरि वथु ॥
इहु धनु संचहु होवहु भगवंत ॥
संत जना का निरमल मंत ॥
एक आस राखहु मन माहि ॥
सरब रोग नानक मिटि जाहि ॥१॥
जिसु धन कउ चारि कुँट उठि धावहि ॥
सो धनु हरि सेवा ते पावहि ॥
जिसु सुख कउ नित बाछहि मीत ॥
सो सुखु साधू संगि परीति ॥
जिसु सोभा कउ करहि भली करनी ॥
सा सोभा भजु हरि की सरनी ॥
अनिक उपावी रोगु न जाइ ॥
रोगु मिटै हरि अवखधु लाइ ॥
सरब निधान महि हरि नामु निधानु ॥
जपि नानक दरगहि परवानु ॥२॥
मनु परबोधहु हरि कै नाइ ॥
दह दिसि धावत आवै ठाइ ॥
ता कउ बिघनु न लागै कोइ ॥
जा कै रिदै बसै हरि सोइ ॥
कलि ताती ठाँढा हरि नाउ ॥
सिमरि सिमरि सदा सुख पाउ ॥
भउ बिनसै पूरन होइ आस ॥
भगति भाइ आतम परगास ॥
तितु घरि जाइ बसै अबिनासी ॥
कहु नानक काटी जम फासी ॥३॥
ततु बीचारु कहै जनु साचा ॥
जनमि मरै सो काचो काचा ॥
आवा गवनु मिटै प्रभ सेव ॥
आपु तिआगि सरनि गुरदेव ॥
इउ रतन जनम का होइ उधारु ॥
हरि हरि सिमरि प्रान आधारु ॥
अनिक उपाव न छूटनहारे ॥
सिंमृति सासत बेद बीचारे ॥
हरि की भगति करहु मनु लाइ ॥
मनि बंछत नानक फल पाइ ॥४॥
संगि न चालसि तेरै धना ॥
तूँ किआ लपटावहि मूरख मना ॥
सुत मीत कुटंब अरु बनिता ॥
इन ते कहहु तुम कवन सनाथा ॥
राज रंग माइआ बिसथार ॥
इन ते कहहु कवन छुटकार ॥
असु हसती रथ असवारी ॥
झूठा डंफु झूठु पासारी ॥
जिनि दीए तिसु बुझै न बिगाना ॥
नामु बिसारि नानक पछुताना ॥५॥
गुर की मति तूँ लेहि इआने ॥
भगति बिना बहु डूबे सिआने ॥
हरि की भगति करहु मन मीत ॥
निरमल होइ तुम्मारो चीत ॥
चरन कमल राखहु मन माहि ॥
जनम जनम के किलबिख जाहि ॥
आपि जपहु अवरा नामु जपावहु ॥
सुनत कहत रहत गति पावहु ॥
सार भूत सति हरि को नाउ ॥
सहजि सुभाइ नानक गुन गाउ ॥६॥
गुन गावत तेरी उतरसि मैलु ॥
बिनसि जाइ हउमै बिखु फैलु ॥
होहि अचिंतु बसै सुख नालि ॥
सासि ग्रासि हरि नामु समालि ॥
छाडि सिआनप सगली मना ॥
साधसंगि पावहि सचु धना ॥
हरि पूँजी संचि करहु बिउहारु ॥
ईहा सुखु दरगह जैकारु ॥
सरब निरंतरि एको देखु ॥
कहु नानक जा कै मसतकि लेखु ॥७॥
एको जपि एको सालाहि ॥
एकु सिमरि एको मन आहि ॥
एकस के गुन गाउ अनंत ॥
मनि तनि जापि एक भगवंत ॥
एको एकु एकु हरि आपि ॥
पूरन पूरि रहिओ प्रभु बिआपि ॥
अनिक बिसथार एक ते भए ॥
एकु अराधि पराछत गए ॥
मन तन अंतरि एकु प्रभु राता ॥
गुर प्रसादि नानक इकु जाता ॥८॥१९॥
सलोकु ॥
फिरत फिरत प्रभ आइआ परिआ तउ सरनाइ ॥
नानक की प्रभ बेनती अपनी भगती लाइ ॥१॥
असटपदी ॥
जाचक जनु जाचै प्रभ दानु ॥
करि किरपा देवहु हरि नामु ॥
साध जना की मागउ धूरि ॥
पारब्रहम मेरी सरधा पूरि ॥
सदा सदा प्रभ के गुन गावउ ॥
सासि सासि प्रभ तुमहि धिआवउ ॥
चरन कमल सिउ लागै प्रीति ॥
भगति करउ प्रभ की नित नीति ॥
एक ओट एको आधारु ॥
नानकु मागै नामु प्रभ सारु ॥१॥
प्रभ की दृसटि महा सुखु होइ ॥
हरि रसु पावै बिरला कोइ ॥
जिन चाखिआ से जन तृपताने ॥
पूरन पुरख नही डोलाने ॥
सुभर भरे प्रेम रस रंगि ॥
उपजै चाउ साध कै संगि ॥
परे सरनि आन सभ तिआगि ॥
अंतरि प्रगास अनदिनु लिव लागि ॥
बडभागी जपिआ प्रभु सोइ ॥
नानक नामि रते सुखु होइ ॥२॥
सेवक की मनसा पूरी भई ॥
सतिगुर ते निरमल मति लई ॥
जन कउ प्रभु होइओ दइआलु ॥
सेवकु कीनो सदा निहालु ॥
बंधन काटि मुकति जनु भइआ ॥
जनम मरन दूखु भ्रमु गइआ ॥
इछ पुनी सरधा सभ पूरी ॥
रवि रहिआ सद संगि हजूरी ॥
जिस का सा तिनि लीआ मिलाइ ॥
नानक भगती नामि समाइ ॥३॥
सो किउ बिसरै जि घाल न भानै ॥
सो किउ बिसरै जि कीआ जानै ॥
सो किउ बिसरै जिनि सभु किछु दीआ ॥
सो किउ बिसरै जि जीवन जीआ ॥
सो किउ बिसरै जि अगनि महि राखै ॥
गुर प्रसादि को बिरला लाखै ॥
सो किउ बिसरै जि बिखु ते काढै ॥
जनम जनम का टूटा गाढै ॥
गुरि पूरै ततु इहै बुझाइआ ॥
प्रभु अपना नानक जन धिआइआ ॥४॥
साजन संत करहु इहु कामु ॥
आन तिआगि जपहु हरि नामु ॥
सिमरि सिमरि सिमरि सुख पावहु ॥
आपि जपहु अवरह नामु जपावहु ॥
भगति भाइ तरीऐ संसारु ॥
बिनु भगती तनु होसी छारु ॥
सरब कलिआण सूख निधि नामु ॥
बूडत जात पाए बिस्रामु ॥
सगल दूख का होवत नासु ॥
नानक नामु जपहु गुनतासु ॥५॥
उपजी प्रीति प्रेम रसु चाउ ॥
मन तन अंतरि इही सुआउ ॥
नेत्रहु पेखि दरसु सुखु होइ ॥
मनु बिगसै साध चरन धोइ ॥
भगत जना कै मनि तनि रंगु ॥
बिरला कोऊ पावै संगु ॥
एक बसतु दीजै करि मइआ ॥
गुर प्रसादि नामु जपि लइआ ॥
ता की उपमा कही न जाइ ॥
नानक रहिआ सरब समाइ ॥६॥
प्रभ बखसंद दीन दइआल ॥
भगति वछल सदा किरपाल ॥
अनाथ नाथ गोबिंद गुपाल ॥
सरब घटा करत प्रतिपाल ॥
आदि पुरख कारण करतार ॥
भगत जना के प्रान अधार ॥
जो जो जपै सु होइ पुनीत ॥
भगति भाइ लावै मन हीत ॥
हम निरगुनीआर नीच अजान ॥
नानक तुमरी सरनि पुरख भगवान ॥७॥
सरब बैकुँठ मुकति मोख पाए ॥
एक निमख हरि के गुन गाए ॥
अनिक राज भोग बडिआई ॥
हरि के नाम की कथा मनि भाई ॥
बहु भोजन कापर संगीत ॥
रसना जपती हरि हरि नीत ॥
भली सु करनी सोभा धनवंत ॥
हिरदै बसे पूरन गुर मंत ॥
साधसंगि प्रभ देहु निवास ॥
सरब सूख नानक परगास ॥८॥२०॥
सलोकु ॥
सरगुन निरगुन निरंकार सुँन समाधी आपि ॥
आपन कीआ नानका आपे ही फिरि जापि ॥१॥
असटपदी ॥
जब अकारु इहु कछु न दृसटेता ॥
पाप पुँन तब कह ते होता ॥
जब धारी आपन सुँन समाधि ॥
तब बैर बिरोध किसु संगि कमाति ॥
जब इस का बरनु चिहनु न जापत ॥
तब हरख सोग कहु किसहि बिआपत ॥
जब आपन आप आपि पारब्रहम ॥
तब मोह कहा किसु होवत भरम ॥
आपन खेलु आपि वरतीजा ॥
नानक करनैहारु न दूजा ॥१॥
जब होवत प्रभ केवल धनी ॥
तब बंध मुकति कहु किस कउ गनी ॥
जब एकहि हरि अगम अपार ॥
तब नरक सुरग कहु कउन अउतार ॥
जब निरगुन प्रभ सहज सुभाइ ॥
तब सिव सकति कहहु कितु ठाइ ॥
जब आपहि आपि अपनी जोति धरै ॥
तब कवन निडरु कवन कत डरै ॥
आपन चलित आपि करनैहार ॥
नानक ठाकुर अगम अपार ॥२॥
अबिनासी सुख आपन आसन ॥
तह जनम मरन कहु कहा बिनासन ॥
जब पूरन करता प्रभु सोइ ॥
तब जम की त्रास कहहु किसु होइ ॥
जब अबिगत अगोचर प्रभ एका ॥
तब चित्र गुपत किसु पूछत लेखा ॥
जब नाथ निरंजन अगोचर अगाधे ॥
तब कउन छुटे कउन बंधन बाधे ॥
आपन आप आप ही अचरजा ॥
नानक आपन रूप आप ही उपरजा ॥३॥
जह निरमल पुरखु पुरख पति होता ॥
तह बिनु मैलु कहहु किआ धोता ॥
जह निरंजन निरंकार निरबान ॥
तह कउन कउ मान कउन अभिमान ॥
जह सरूप केवल जगदीस ॥
तह छल छिद्र लगत कहु कीस ॥
जह जोति सरूपी जोति संगि समावै ॥
तह किसहि भूख कवनु तृपतावै ॥
करन करावन करनैहारु ॥
नानक करते का नाहि सुमारु ॥४॥
जब अपनी सोभा आपन संगि बनाई ॥
तब कवन माइ बाप मित्र सुत भाई ॥
जह सरब कला आपहि परबीन ॥
तह बेद कतेब कहा कोऊ चीन ॥
जब आपन आपु आपि उरि धारै ॥
तउ सगन अपसगन कहा बीचारै ॥
जह आपन ऊच आपन आपि नेरा ॥
तह कउन ठाकुरु कउनु कहीऐ चेरा ॥
बिसमन बिसम रहे बिसमाद ॥
नानक अपनी गति जानहु आपि ॥५॥
जह अछल अछेद अभेद समाइआ ॥
ऊहा किसहि बिआपत माइआ ॥
आपस कउ आपहि आदेसु ॥
तिहु गुण का नाही परवेसु ॥
जह एकहि एक एक भगवंता ॥
तह कउनु अचिंतु किसु लागै चिंता ॥
जह आपन आपु आपि पतीआरा ॥
तह कउनु कथै कउनु सुननैहारा ॥
बहु बेअंत ऊच ते ऊचा ॥
नानक आपस कउ आपहि पहूचा ॥६॥
जह आपि रचिओ परपंचु अकारु ॥
तिहु गुण महि कीनो बिसथारु ॥
पापु पुँनु तह भई कहावत ॥
कोऊ नरक कोऊ सुरग बंछावत ॥
आल जाल माइआ जंजाल ॥
हउमै मोह भरम भै भार ॥
दूख सूख मान अपमान ॥
अनिक प्रकार कीओ बख्यान ॥
आपन खेलु आपि करि देखै ॥
खेलु संकोचै तउ नानक एकै ॥७॥
जह अबिगतु भगतु तह आपि ॥
जह पसरै पासारु संत परतापि ॥
दुहू पाख का आपहि धनी ॥
उन की सोभा उनहू बनी ॥
आपहि कउतक करै अनद चोज ॥
आपहि रस भोगन निरजोग ॥
जिसु भावै तिसु आपन नाइ लावै ॥
जिसु भावै तिसु खेल खिलावै ॥
बेसुमार अथाह अगनत अतोलै ॥
जिउ बुलावहु तिउ नानक दास बोलै ॥८॥२१॥
सलोकु ॥
जीअ जंत के ठाकुरा आपे वरतणहार ॥
नानक एको पसरिआ दूजा कह दृसटार ॥१॥
असटपदी ॥
आपि कथै आपि सुननैहारु ॥
आपहि एकु आपि बिसथारु ॥
जा तिसु भावै ता सृसटि उपाए ॥
आपनै भाणै लए समाए ॥
तुम ते भिंन नही किछु होइ ॥
आपन सूति सभु जगतु परोइ ॥
जा कउ प्रभ जीउ आपि बुझाए ॥
सचु नामु सोई जनु पाए ॥
सो समदरसी तत का बेता ॥
नानक सगल सृसटि का जेता ॥१॥
जीअ जंत्र सभ ता कै हाथ ॥
दीन दइआल अनाथ को नाथु ॥
जिसु राखै तिसु कोइ न मारै ॥
सो मूआ जिसु मनहु बिसारै ॥
तिसु तजि अवर कहा को जाइ ॥
सभ सिरि एकु निरंजन राइ ॥
जीअ की जुगति जा कै सभ हाथि ॥
अंतरि बाहरि जानहु साथि ॥
गुन निधान बेअंत अपार ॥
नानक दास सदा बलिहार ॥२॥
पूरन पूरि रहे दइआल ॥
सभ ऊपरि होवत किरपाल ॥
अपने करतब जानै आपि ॥
अंतरजामी रहिओ बिआपि ॥
प्रतिपालै जीअन बहु भाति ॥
जो जो रचिओ सु तिसहि धिआति ॥
जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ॥
भगति करहि हरि के गुण गाइ ॥
मन अंतरि बिस्वासु करि मानिआ ॥
करनहारु नानक इकु जानिआ ॥३॥
जनु लागा हरि एकै नाइ ॥
तिस की आस न बिरथी जाइ ॥
सेवक कउ सेवा बनि आई ॥
हुकमु बूझि परम पदु पाई ॥
इस ते ऊपरि नही बीचारु ॥
जा कै मनि बसिआ निरंकारु ॥
बंधन तोरि भए निरवैर ॥
अनदिनु पूजहि गुर के पैर ॥
इह लोक सुखीए परलोक सुहेले ॥
नानक हरि प्रभि आपहि मेले ॥४॥
साधसंगि मिलि करहु अनंद ॥
गुन गावहु प्रभ परमानंद ॥
राम नाम ततु करहु बीचारु ॥
द्रुलभ देह का करहु उधारु ॥
अंमृत बचन हरि के गुन गाउ ॥
प्रान तरन का इहै सुआउ ॥
आठ पहर प्रभ पेखहु नेरा ॥
मिटै अगिआनु बिनसै अंधेरा ॥
सुनि उपदेसु हिरदै बसावहु ॥
मन इछे नानक फल पावहु ॥५॥
हलतु पलतु दुइ लेहु सवारि ॥
राम नामु अंतरि उरि धारि ॥
पूरे गुर की पूरी दीखिआ ॥
जिसु मनि बसै तिसु साचु परीखिआ ॥
मनि तनि नामु जपहु लिव लाइ ॥
दूखु दरदु मन ते भउ जाइ ॥
सचु वापारु करहु वापारी ॥
दरगह निबहै खेप तुमारी ॥
एका टेक रखहु मन माहि ॥
नानक बहुरि न आवहि जाहि ॥६॥
तिस ते दूरि कहा को जाइ ॥
उबरै राखनहारु धिआइ ॥
निरभउ जपै सगल भउ मिटै ॥
प्रभ किरपा ते प्राणी छुटै ॥
जिसु प्रभु राखै तिसु नाही दूख ॥
नामु जपत मनि होवत सूख ॥
चिंता जाइ मिटै अहंकारु ॥
तिसु जन कउ कोइ न पहुचनहारु ॥
सिर ऊपरि ठाढा गुरु सूरा ॥
नानक ता के कारज पूरा ॥७॥
मति पूरी अंमृतु जा की दृसटि ॥
दरसनु पेखत उधरत सृसटि ॥
चरन कमल जा के अनूप ॥
सफल दरसनु सुँदर हरि रूप ॥
धंनु सेवा सेवकु परवानु ॥
अंतरजामी पुरखु प्रधानु ॥
जिसु मनि बसै सु होत निहालु ॥
ता कै निकटि न आवत कालु ॥
अमर भए अमरा पदु पाइआ ॥
साधसंगि नानक हरि धिआइआ ॥८॥२२॥
सलोकु ॥
गिआन अंजनु गुरि दीआ अगिआन अंधेर बिनासु ॥
हरि किरपा ते संत भेटिआ नानक मनि परगासु ॥१॥
असटपदी ॥
संतसंगि अंतरि प्रभु डीठा ॥
नामु प्रभू का लागा मीठा ॥
सगल समिग्री एकसु घट माहि ॥
अनिक रंग नाना दृसटाहि ॥
नउ निधि अंमृतु प्रभ का नामु ॥
देही महि इस का बिस्रामु ॥
सुँन समाधि अनहत तह नाद ॥
कहनु न जाई अचरज बिसमाद ॥
तिनि देखिआ जिसु आपि दिखाए ॥
नानक तिसु जन सोझी पाए ॥१॥
सो अंतरि सो बाहरि अनंत ॥
घटि घटि बिआपि रहिआ भगवंत ॥
धरनि माहि आकास पइआल ॥
सरब लोक पूरन प्रतिपाल ॥
बनि तिनि परबति है पारब्रहमु ॥
जैसी आगिआ तैसा करमु ॥
पउण पाणी बैसंतर माहि ॥
चारि कुँट दह दिसे समाहि ॥
तिस ते भिंन नही को ठाउ ॥
गुर प्रसादि नानक सुखु पाउ ॥२॥
बेद पुरान सिंमृति महि देखु ॥
ससीअर सूर नख्यत्र महि एकु ॥
बाणी प्रभ की सभु को बोलै ॥
आपि अडोलु न कबहू डोलै ॥
सरब कला करि खेलै खेल ॥
मोलि न पाईऐ गुणह अमोल ॥
सरब जोति महि जा की जोति ॥
धारि रहिओ सुआमी ओति पोति ॥
गुर परसादि भरम का नासु ॥
नानक तिन महि एहु बिसासु ॥३॥
संत जना का पेखनु सभु ब्रहम ॥
संत जना कै हिरदै सभि धरम ॥
संत जना सुनहि सुभ बचन ॥
सरब बिआपी राम संगि रचन ॥
जिनि जाता तिस की इह रहत ॥
सति बचन साधू सभि कहत ॥
जो जो होइ सोई सुखु मानै ॥
करन करावनहारु प्रभु जानै ॥
अंतरि बसे बाहरि भी ओही ॥
नानक दरसनु देखि सभ मोही ॥४॥
आपि सति कीआ सभु सति ॥
तिसु प्रभ ते सगली उतपति ॥
तिसु भावै ता करे बिसथारु ॥
तिसु भावै ता एकंकारु ॥
अनिक कला लखी नह जाइ ॥
जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ॥
कवन निकटि कवन कहीऐ दूरि ॥
आपे आपि आप भरपूरि ॥
अंतरगति जिसु आपि जनाए ॥
नानक तिसु जन आपि बुझाए ॥५॥
सरब भूत आपि वरतारा ॥
सरब नैन आपि पेखनहारा ॥
सगल समग्री जा का तना ॥
आपन जसु आप ही सुना ॥
आवन जानु इकु खेलु बनाइआ ॥
आगिआकारी कीनी माइआ ॥
सभ कै मधि अलिपतो रहै ॥
जो किछु कहणा सु आपे कहै ॥
आगिआ आवै आगिआ जाइ ॥
नानक जा भावै ता लए समाइ ॥६॥
इस ते होइ सु नाही बुरा ॥
ओरै कहहु किनै कछु करा ॥
आपि भला करतूति अति नीकी ॥
आपे जानै अपने जी की ॥
आपि साचु धारी सभ साचु ॥
ओति पोति आपन संगि राचु ॥
ता की गति मिति कही न जाइ ॥
दूसर होइ त सोझी पाइ ॥
तिस का कीआ सभु परवानु ॥
गुर प्रसादि नानक इहु जानु ॥७॥
जो जानै तिसु सदा सुखु होइ ॥
आपि मिलाइ लए प्रभु सोइ ॥
ओहु धनवंतु कुलवंतु पतिवंतु ॥
जीवन मुकति जिसु रिदै भगवंतु ॥
धंनु धंनु धंनु जनु आइआ ॥
जिसु प्रसादि सभु जगतु तराइआ ॥
जन आवन का इहै सुआउ ॥
जन कै संगि चिति आवै नाउ ॥
आपि मुकतु मुकतु करै संसारु ॥
नानक तिसु जन कउ सदा नमसकारु ॥८॥२३॥
सलोकु ॥
पूरा प्रभु आराधिआ पूरा जा का नाउ ॥
नानक पूरा पाइआ पूरे के गुन गाउ ॥१॥
असटपदी ॥
पूरे गुर का सुनि उपदेसु ॥
पारब्रहमु निकटि करि पेखु ॥
सासि सासि सिमरहु गोबिंद ॥
मन अंतर की उतरै चिंद ॥
आस अनित तिआगहु तरंग ॥
संत जना की धूरि मन मंग ॥
आपु छोडि बेनती करहु ॥
साधसंगि अगनि सागरु तरहु ॥
हरि धन के भरि लेहु भंडार ॥
नानक गुर पूरे नमसकार ॥१॥
खेम कुसल सहज आनंद ॥
साधसंगि भजु परमानंद ॥
नरक निवारि उधारहु जीउ ॥
गुन गोबिंद अंमृत रसु पीउ ॥
चिति चितवहु नाराइण एक ॥
एक रूप जा के रंग अनेक ॥
गोपाल दामोदर दीन दइआल ॥
दुख भंजन पूरन किरपाल ॥
सिमरि सिमरि नामु बारं बार ॥
नानक जीअ का इहै अधार ॥२॥
उतम सलोक साध के बचन ॥
अमुलीक लाल एहि रतन ॥
सुनत कमावत होत उधार ॥
आपि तरै लोकह निसतार ॥
सफल जीवनु सफलु ता का संगु ॥
जा कै मनि लागा हरि रंगु ॥
जै जै सबदु अनाहदु वाजै ॥
सुनि सुनि अनद करे प्रभु गाजै ॥
प्रगटे गुपाल महाँत कै माथे ॥
नानक उधरे तिन कै साथे ॥३॥
सरनि जोगु सुनि सरनी आए ॥
करि किरपा प्रभ आप मिलाए ॥
मिटि गए बैर भए सभ रेन ॥
अंमृत नामु साधसंगि लैन ॥
सुप्रसंन भए गुरदेव ॥
पूरन होई सेवक की सेव ॥
आल जंजाल बिकार ते रहते ॥
राम नाम सुनि रसना कहते ॥
करि प्रसादु दइआ प्रभि धारी ॥
नानक निबही खेप हमारी ॥४॥
प्रभ की उसतति करहु संत मीत ॥
सावधान एकागर चीत ॥
सुखमनी सहज गोबिंद गुन नाम ॥
जिसु मनि बसै सु होत निधान ॥
सरब इछा ता की पूरन होइ ॥
प्रधान पुरखु प्रगटु सभ लोइ ॥
सभ ते ऊच पाए असथानु ॥
बहुरि न होवै आवन जानु ॥
हरि धनु खाटि चलै जनु सोइ ॥
नानक जिसहि परापति होइ ॥५॥
खेम साँति रिधि नव निधि ॥
बुधि गिआनु सरब तह सिधि ॥
बिदिआ तपु जोगु प्रभ धिआनु ॥
गिआनु स्रेसट ऊतम इसनानु ॥
चारि पदारथ कमल प्रगास ॥
सभ कै मधि सगल ते उदास ॥
सुँदरु चतुरु तत का बेता ॥
समदरसी एक दृसटेता ॥
इह फल तिसु जन कै मुखि भने ॥ गुर नानक नाम बचन मनि सुने ॥६॥
इहु निधानु जपै मनि कोइ ॥
सभ जुग महि ता की गति होइ ॥
गुण गोबिंद नाम धुनि बाणी ॥
सिमृति सासत्र बेद बखाणी ॥
सगल मताँत केवल हरि नाम ॥
गोबिंद भगत कै मनि बिस्राम ॥
कोटि अप्राध साधसंगि मिटै ॥
संत कृपा ते जम ते छुटै ॥
जा कै मसतकि करम प्रभि पाए ॥
साध सरणि नानक ते आए ॥७॥
जिसु मनि बसै सुनै लाइ प्रीति ॥
तिसु जन आवै हरि प्रभु चीति ॥
जनम मरन ता का दूखु निवारै ॥
दुलभ देह ततकाल उधारै ॥
निरमल सोभा अंमृत ता की बानी ॥
एकु नामु मन माहि समानी ॥
दूख रोग बिनसे भै भरम ॥
साध नाम निरमल ता के करम ॥
सभ ते ऊच ता की सोभा बनी ॥
नानक इह गुणि नामु सुखमनी ॥८॥२४॥