सोहिला साहिब
सोरठि महला ५ ॥
गुर का सबदु रखवारे ॥
चउकी चउगिरद हमारे ॥
राम नामि मनु लागा ॥
जमु लजाइ करि भागा ॥१॥
प्रभ जी तू मेरो सुखदाता ॥
बंधन काटि करे मनु निरमलु पूरन पुरखु बिधाता ॥ रहाउ ॥
नानक प्रभु अबिनासी ॥
ता की सेव न बिरथी जासी ॥
अनद करहि तेरे दासा ॥
जपि पूरन होई आसा ॥२॥४॥६८॥
बिलावलु महला ५ ॥
ताती वाउ न लगई पारब्रहम सरणाई ॥
चउगिरद हमारै राम कार दुखु लगै न भाई ॥१॥
सतिगुरु पूरा भेटिआ जिनि बणत बणाई ॥
राम नामु अउखधु दीआ एका लिव लाई ॥१॥ रहाउ ॥
राखि लीए तिनि रखनहारि सभ बिआधि मिटाई ॥
कहु नानक किरपा भई प्रभ भए सहाई ॥२॥१५॥७९॥
सलोकु ॥
जह साधू गोबिद भजनु कीरतनु नानक नीत ॥
णा हउ णा तूँ णह छुटहि निकटि न जाईअहु दूत ॥१॥
सलोक म: ५ ॥
मन महि चितवउ चितवनी उदमु करउ उठि नीत ॥
हरि कीरतन का आहरो हरि देहु नानक के मीत ॥१॥
पउड़ी ॥
रैणि दिनसु परभाति तूहै ही गावणा ॥
जीअ जंत सरबत नाउ तेरा धिआवणा ॥
तू दाता दातारु तेरा दिता खावणा ॥
भगत जना कै संगि पाप गवावणा ॥
जन नानक सद बलिहारै बलि बलि जावणा ॥२५॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सोहिला रागु गउड़ी दीपकी महला १
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
जै घरि कीरति आखीऐ करते का होइ बीचारो ॥
तितु घरि गावहु सोहिला सिवरिहु सिरजणहारो ॥१॥
तुम गावहु मेरे निरभउ का सोहिला ॥
हउ वारी जितु सोहिलै सदा सुखु होइ ॥१॥ रहाउ ॥
नित नित जीअड़े समालीअनि देखैगा देवणहारु ॥
तेरे दानै कीमति ना पवै तिसु दाते कवणु सुमारु ॥२॥
संबति साहा लिखिआ मिलि करि पावहु तेलु ॥
देहु सजण असीसड़ीआ जिउ होवै साहिब सिउ मेलु ॥३॥
घरि घरि एहो पाहुचा सदड़े नित पवंनि ॥
सदणहारा सिमरीऐ नानक से दिह आवंनि ॥४॥१॥
रागु आसा महला १ ॥
छिअ घर छिअ गुर छिअ उपदेस ॥
गुरु गुरु एको वेस अनेक ॥१॥
बाबा जै घरि करते कीरति होइ ॥
सो घरु राखु वडाई तोइ ॥१॥ रहाउ ॥
विसुए चसिआ घड़ीआ पहरा थिती वारी माहु होआ ॥
सूरजु एको रुति अनेक ॥
नानक करते के केते वेस ॥२॥२॥
रागु धनासरी महला १ ॥
गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोती ॥
धूपु मलआनलो पवणु चवरो करे सगल बनराइ फूलंत जोती ॥१॥
कैसी आरती होइ ॥ भव खंडना तेरी आरती ॥
अनहता सबद वाजंत भेरी ॥१॥ रहाउ ॥
सहस तव नैन नन नैन हहि तोहि कउ सहस मूरति नना एक तुोही ॥
सहस पद बिमल नन एक पद गंध बिनु सहस तव गंध इव चलत मोही ॥२॥
सभ महि जोति जोति है सोइ ॥
तिस दै चानणि सभ महि चानणु होइ ॥
गुर साखी जोति परगटु होइ ॥
जो तिसु भावै सु आरती होइ ॥३॥
हरि चरण कवल मकरंद लोभित मनो अनदिनुो मोहि आही पिआसा ॥
कृपा जलु देहि नानक सारिंग कउ होइ जा ते तेरै नाइ वासा ॥४॥३॥
रागु गउड़ी पूरबी महला ४ ॥
कामि करोधि नगरु बहु भरिआ मिलि साधू खंडल खंडा हे ॥
पूरबि लिखत लिखे गुरु पाइआ मनि हरि लिव मंडल मंडा हे ॥१॥
करि साधू अंजुली पुनु वडा हे ॥
करि डंडउत पुनु वडा हे ॥१॥ रहाउ ॥
साकत हरि रस सादु न जाणिआ तिन अंतरि हउमै कंडा हे ॥
जिउ जिउ चलहि चुभै दुखु पावहि जमकालु सहहि सिरि डंडा हे ॥२॥
हरि जन हरि हरि नामि समाणे दुखु जनम मरण भव खंडा हे ॥
अबिनासी पुरखु पाइआ परमेसरु बहु सोभ खंड ब्रहमंडा हे ॥३॥
हम गरीब मसकीन प्रभ तेरे हरि राखु राखु वड वडा हे ॥
जन नानक नामु अधारु टेक है हरि नामे ही सुखु मंडा हे ॥४॥४॥
रागु गउड़ी पूरबी महला ५ ॥
करउ बेनंती सुणहु मेरे मीता संत टहल की बेला ॥
ईहा खाटि चलहु हरि लाहा आगै बसनु सुहेला ॥१॥
अउध घटै दिनसु रैणारे ॥ मन गुर मिलि काज सवारे ॥१॥ रहाउ ॥
इहु संसारु बिकारु संसे महि तरिओ ब्रहम गिआनी ॥
जिसहि जगाइ पीआवै इहु रसु अकथ कथा तिनि जानी ॥२॥
जा कउ आए सोई बिहाझहु हरि गुर ते मनहि बसेरा ॥
निज घरि महलु पावहु सुख सहजे बहुरि न होइगो फेरा ॥३॥
अंतरजामी पुरख बिधाते सरधा मन की पूरे ॥
नानक दासु इहै सुखु मागै मो कउ करि संतन की धूरे ॥४॥५॥
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥
॥ जपु ॥
आदि सचु जुगादि सचु ॥
है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥१॥
सलोकु ॥
पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु ॥
दिवसु राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु ॥
चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरमु हदूरि ॥
करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूरि ॥
जिनी नामु धिआइआ गए मसकति घालि ॥
नानक ते मुख उजले केती छुटी नालि ॥१॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
जापु ॥
स्री मुखवाक पातिसाही १० ॥
छपै छंद ॥ त्व प्रसादि ॥
चक्क्र चिहन अरु बरन जाति अरु पाति नहिन जिह ॥
रूप रंग अरु रेख भेख कोऊ कहि न सकति किह ॥
अचल मूरति अनभउ प्रकास अमितोजि कहिज्जै ॥
कोटि इंद्र इंद्राण साहु साहाणि गणिजै ॥
तृभवण महीप सुर नर असुर नेत नेत बन तृण कहत ॥
तव सरब नाम कथै कवन करम नाम बरनत सुमति ॥१॥
भुजंग प्रयात छंद ॥
नमसत्वं अकाले ॥
नमसत्वं कृपाले ॥
नमसतं अरूपे ॥
नमसतं अनूपे ॥२॥
नमसतं अभेखे ॥
नमसतं अलेखे ॥
नमसतं अकाए ॥
नमसतं अजाए ॥३॥
नमसतं अगंजे ॥
नमसतं अभंजे ॥
नमसतं अनामे ॥
नमसतं अठामे ॥४॥
नमसतं अकरमं ॥
नमसतं अधरमं ॥
नमसतं अनामं ॥
नमसतं अधामं ॥५॥
चाचरी छंद ॥ त्व प्रसादि ॥
गुबिंदे ॥
मुकंदे ॥
उदारे ॥
अपारे ॥९४॥
हरीअं ॥
करीअं ॥
नृनामे ॥
अकामे ॥९५॥
भुजंग प्रयात छंद ॥
नमसतुल प्रनामे समसतुल प्रणासे ॥
अगंजुल अनामे समसतुल निवासे ॥
नृकामं बिभूते समसतुल सरूपे ॥
कुकरमं प्रणासी सुधरमं बिभूते ॥१९७॥
सदा सच्चिदानंद सत्त्रं प्रणासी ॥
करीमुल कुनिंदा समसतुल निवासी ॥
अजाइब बिभूते गजाइब गनीमे ॥
हरीअं करीअं करीमलु रहीमे ॥१९८॥
चत्त्र चक्क्र वरती चत्त्र चक्क्र भुगते ॥
सुयंभव सुभं सरबदा सरब जुगते ॥
दुकालं प्रणासी दिआलं सरूपे ॥
सदा अंग संगे अभंगं बिभूते ॥१९९॥