रहरासि साहिब
सलोक म: १ ॥
धंनु सु कागदु कलम धंनु धनु भाँडा धनु मसु ॥
धनु लेखारी नानका जिनि नामु लिखाइआ सचु ॥१॥
म: १ ॥
आपे पटी कलम आपि उपरि लेखु भि तूँ ॥
एको कहीऐ नानका दूजा काहे कू ॥२॥
हरि जुगु जुगु भगत उपाइआ पैज रखदा आइआ राम राजे ॥
हरणाखसु दुसटु हरि मारिआ प्रहलादु तराइआ ॥
अहंकारीआ निंदका पिठि देइ नामदेउ मुखि लाइआ ॥
जन नानक ऐसा हरि सेविआ अंति लए छडाइआ ॥४॥१३॥२०॥
सलोकु म: १ ॥
दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥
तूँ करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥
बलिहारी कुदरति वसिआ ॥
तेरा अंतु न जाई लखिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जाति महि जोति जोति महि जाता अकल कला भरपूरि रहिआ ॥
तूँ सचा साहिबु सिफति सुआलि्िउ जिनि कीती सो पारि पइआ ॥
कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सो दरु रागु आसा महला १
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सो दरु तेरा केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥
वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥
केते तेरे राग परी सिउ कहीअहि केते तेरे गावणहारे ॥
गावनि तुधनो पवणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥
गावनि तुधनो चितु गुपतु लिखि जाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे ॥
गावनि तुधनो ईसरु ब्रहमा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे ॥
गावनि तुधनो इंद्र इंद्रासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥
गावनि तुधनो सिध समाधी अंदरि गावनि तुधनो साध बीचारे ॥
गावनि तुधनो जती सती संतोखी गावनि तुधनो वीर करारे ॥
गावनि तुधनो पंडित पड़नि रखीसुर जुगु जुगु वेदा नाले ॥
गावनि तुधनो मोहणीआ मनु मोहनि सुरगु मछु पइआले ॥
गावनि तुधनो रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥
गावनि तुधनो जोध महाबल सूरा गावनि तुधनो खाणी चारे ॥
गावनि तुधनो खंड मंडल ब्रहमंडा करि करि रखे तेरे धारे ॥
सेई तुधनो गावनि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥
होरि केते तुधनो गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ बीचारे ॥
सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥
है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥
रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥
करि करि देखै कीता आपणा जिउ तिस दी वडिआई ॥
जो तिसु भावै सोई करसी फिरि हुकमु न करणा जाई ॥
सो पातिसाहु साहा पतिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥१॥
आसा महला १ ॥
सुणि वडा आखै सभु कोइ ॥
केवडु वडा डीठा होइ ॥
कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥
कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥
वडे मेरे साहिबा गहिर गंभीरा गुणी गहीरा ॥
कोइ न जाणै तेरा केता केवडु चीरा ॥१॥ रहाउ ॥
सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥
सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥
गिआनी धिआनी गुर गुरहाई ॥
कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥
सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥
सिधा पुरखा कीआ वडिआईआ ॥
तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥
करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥
आखण वाला किआ वेचारा ॥
सिफती भरे तेरे भंडारा ॥
जिसु तू देहि तिसै किआ चारा ॥
नानक सचु सवारणहारा ॥४॥२॥
आसा महला १ ॥
आखा जीवा विसरै मरि जाउ ॥
आखणि अउखा साचा नाउ ॥
साचे नाम की लागै भूख ॥
उतु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥
सो किउ विसरै मेरी माइ ॥
साचा साहिबु साचै नाइ ॥१॥ रहाउ ॥
साचे नाम की तिलु वडिआई ॥
आखि थके कीमति नही पाई ॥
जे सभि मिलि कै आखण पाहि ॥
वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥
ना ओहु मरै न होवै सोगु ॥
देदा रहै न चूकै भोगु ॥
गुणु एहो होरु नाही कोइ ॥
ना को होआ ना को होइ ॥३॥
जेवडु आपि तेवड तेरी दाति ॥
जिनि दिनु करि कै कीती राति ॥
खसमु विसारहि ते कमजाति ॥
नानक नावै बाझु सनाति ॥४॥३॥
रागु गूजरी महला ४ ॥
हरि के जन सतिगुर सतपुरखा बिनउ करउ गुर पासि ॥
हम कीरे किरम सतिगुर सरणाई करि दइआ नामु परगासि ॥१॥
मेरे मीत गुरदेव मो कउ राम नामु परगासि ॥
गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥ रहाउ ॥
हरि जन के वड भाग वडेरे जिन हरि हरि सरधा हरि पिआस ॥
हरि हरि नामु मिलै तृपतासहि मिलि संगति गुण परगासि ॥२॥
जिन हरि हरि हरि रसु नामु न पाइआ ते भागहीण जम पासि ॥
जो सतिगुर सरणि संगति नही आए धृगु जीवे धृगु जीवासि ॥३॥
जिन हरि जन सतिगुर संगति पाई तिन धुरि मसतकि लिखिआ लिखासि ॥
धनु धंनु सतसंगति जितु हरि रसु पाइआ मिलि जन नानक नामु परगासि ॥४॥४॥
रागु गूजरी महला ५ ॥
काहे रे मन चितवहि उदमु जा आहरि हरि जीउ परिआ ॥
सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥
मेरे माधउ जी सतसंगति मिले सु तरिआ ॥
गुर परसादि परम पदु पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥
सिरि सिरि रिजकु संबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ ॥२॥
ऊडे ऊडि आवै सै कोसा तिसु पाछै बचरे छरिआ ॥
तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥
सभि निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरिआ ॥
जन नानक बलि बलि सद बलि जाईऐ तेरा अंतु न पारावरिआ ॥४॥५॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
रागु आसा महला ४ सो पुरखु
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥
सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजणहारा ॥
सभि जीअ तुमारे जी तूँ जीआ का दातारा ॥
हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा ॥
हरि आपे ठाकुरु हरि आपे सेवकु जी किआ नानक जंत विचारा ॥१॥
तूँ घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समाणा ॥
इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज विडाणा ॥
तूँ आपे दाता आपे भुगता जी हउ तुधु बिनु अवरु न जाणा ॥
तूँ पारब्रहमु बेअंतु बेअंतु जी तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥
जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी जनु नानकु तिन कुरबाणा ॥२॥
हरि धिआवहि हरि धिआवहि तुधु जी से जन जुग महि सुखवासी ॥
से मुकतु से मुकतु भए जिन हरि धिआइआ जी तिन तूटी जम की फासी ॥
जिन निरभउ जिन हरि निरभउ धिआइआ जी तिन का भउ सभु गवासी ॥
जिन सेविआ जिन सेविआ मेरा हरि जी ते हरि हरि रूपि समासी ॥
से धंनु से धंनु जिन हरि धिआइआ जी जनु नानकु तिन बलि जासी ॥३॥
तेरी भगति तेरी भगति भंडार जी भरे बिअंत बेअंता ॥
तेरे भगत तेरे भगत सलाहनि तुधु जी हरि अनिक अनेक अनंता ॥
तेरी अनिक तेरी अनिक करहि हरि पूजा जी तपु तापहि जपहि बेअंता ॥
तेरे अनेक तेरे अनेक पड़हि बहु सिमृति सासत जी करि किरिआ खटु करम करंता ॥
से भगत से भगत भले जन नानक जी जो भावहि मेरे हरि भगवंता ॥४॥
तूँ आदि पुरखु अपरंपरु करता जी तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥
तूँ जुगु जुगु एको सदा सदा तूँ एको जी तूँ निहचलु करता सोई ॥
तुधु आपे भावै सोई वरतै जी तूँ आपे करहि सु होई ॥
तुधु आपे सृसटि सभ उपाई जी तुधु आपे सिरजि सभ गोई ॥
जनु नानकु गुण गावै करते के जी जो सभसै का जाणोई ॥५॥१॥
आसा महला ४ ॥
तूँ करता सचिआरु मैडा साँई ॥
जो तउ भावै सोई थीसी जो तूँ देहि सोई हउ पाई ॥१॥ रहाउ ॥
सभ तेरी तूँ सभनी धिआइआ ॥
जिस नो कृपा करहि तिनि नाम रतनु पाइआ ॥
गुरमुखि लाधा मनमुखि गवाइआ ॥
तुधु आपि विछोड़िआ आपि मिलाइआ ॥१॥
तूँ दरीआउ सभ तुझ ही माहि ॥
तुझ बिनु दूजा कोई नाहि ॥
जीअ जंत सभि तेरा खेलु ॥
विजोगि मिलि विछुड़िआ संजोगी मेलु ॥२॥
जिस नो तू जाणाइहि सोई जनु जाणै ॥
हरि गुण सद ही आखि वखाणै ॥
जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥
सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥
तू आपे करता तेरा कीआ सभु होइ ॥
तुधु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥
तू करि करि वेखहि जाणहि सोइ ॥
जन नानक गुरमुखि परगटु होइ ॥४॥२॥
आसा महला १ ॥
तितु सरवरड़ै भईले निवासा पाणी पावकु तिनहि कीआ ॥
पंकजु मोह पगु नही चालै हम देखा तह डूबीअले ॥१॥
मन एकु न चेतसि मूड़ मना ॥
हरि बिसरत तेरे गुण गलिआ ॥१॥ रहाउ ॥
ना हउ जती सती नही पड़िआ मूरख मुगधा जनमु भइआ ॥
प्रणवति नानक तिन की सरणा जिन तू नाही वीसरिआ ॥२॥३॥
आसा महला ५ ॥
भई परापति मानुख देहुरीआ ॥
गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥
अवरि काज तेरै कितै न काम ॥
मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥१॥
सरंजामि लागु भवजल तरन कै ॥
जनमु बृथा जात रंगि माइआ कै ॥१॥ रहाउ ॥
जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥
सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥
कहु नानक हम नीच करंमा ॥
सरणि परे की राखहु सरमा ॥२॥४॥
दोहरा ॥
महा काल की सरनि जे परे सु लए बचाइ ॥
और न उपजा दूसर जग भछियो सभै बनाइ ॥३६६॥
जो पूजा असिकेतु की नित प्रति करै बनाइ ॥
तिन पर अपनो हाथ दै असिधुज लेत बचाइ ॥३६७॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
स्री वाहिगुरू जी की फतह ॥
पातिशाही १० ॥
चौपई ॥
दुसट दैत कछु बात न जानी ॥
महा काल तन पुनि रिसि ठानी ॥
बल अपबल अपनो न बिचारा ॥
गरब ठानि जिय बहुरि हंकारा ॥३६८॥
रे रे काल फूलि जिनि जाहु ॥
बहुरि आनि संग्राम मचाहु ॥
एक निदान करो रन माही ॥
कै असिधुजि कै दानव नाही ॥३६९॥
एक पाव तजि जुध न भाजा ॥
महाराज दैतन का राजा ॥
आँतौ गीध गगन लै गए ॥
बाहत बिसिख तऊ हठ भए ॥३७०॥
असुर अमित रन बान चलाए ॥
निरखि खड़गधुज काटि गिराए ॥
बीस सहस्र असुर पर बाना ॥
स्री असिधुज छाडे बिधि नाना ॥३७१॥
महा काल पुनि जिय मै कोपा ॥
धनुख टंकोर बहुरि रन रोपा ॥
एक बान ते धुजहि गिरायो ॥
दुतिय सत्रु को सीस उडायो ॥३७२॥
दुहूँ बिसिख करि द्वै रथ चक्र ॥
काटि दए छिन इक मै बक्र ॥
चारहि बान चार हूँ बाजा ॥
मार दए सभ जग के राजा ॥३७३॥
बहुरि असुर का काटसि माथा ॥
स्री असिकेति जगत के नाथा ॥
दुतिय बान सौ दोऊ अरि कर ॥
काटि दयो असिधुज नर नाहर ॥३७४॥
पुनि राछस का काटा सीसा ॥
स्री असिकेतु जगत के ईसा ॥
पुहपन बृसटि गगन ते भई ॥
सभहिन आनि बधाई दई ॥३७५॥
धंन्य धंन्य लोगन के राजा ॥
दुसटन दाह गरीब निवाजा ॥
अखल भवन के सिरजनहारे ॥
दास जानि मुहि लेहु उबारे ॥३७६॥
ੴ स्री वाहिगुरू जी की फतह ॥
पातिशाही १० ॥
कबियो बाच बेनती ॥
चौपई ॥
हमरी करो हाथ दै रच्छा ॥
पूरन होइ चित की इच्छा ॥
तव चरनन मन रहै हमारा ॥
अपना जान करो प्रतिपारा ॥३७७॥
हमरे दुसट सभै तुम घावहु ॥
आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥
सुखी बसै मोरो परिवारा ॥
सेवक सिक्ख सभै करतारा ॥३७८॥
मो रच्छा निज कर दै करियै ॥
सभ बैरन को आज संघरियै ॥
पूरन होइ हमारी आसा ॥
तोर भजन की रहै पिआसा ॥३७९॥
तुमहि छाडि कोई अवर न धियाऊं ॥
जो बर चहों सु तुम ते पाऊं ॥
सेवक सिक्ख हमारे तारीअहि ॥
चुनि चुनि सत्र हमारे मारीअहि ॥३८०॥
आप हाथ दै मुझै उबरियै ॥
मरन काल का त्रास निवरियै ॥
हूजो सदा हमारे पच्छा ॥
स्री असिधुज जू करियहु रच्छा ॥३८१॥
राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥
साहिब संत सहाइ पियारे ॥
दीन बंधु दुसटन के हंता ॥
तुम हो पुरी चतुर दस कंता ॥३८२॥
काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥
काल पाइ सिवजू अवतरा ॥
काल पाइ कर बिसनु प्रकासा ॥
सकल काल का कीआ तमासा ॥३८३॥
जवन काल जोगी सिव कीओ ॥
बेद राज ब्रहमा जू थीओ ॥
जवन काल सभ लोक सवारा ॥
नमसकार है ताहि हमारा ॥३८४॥
जवन काल सभ जगत बनायो ॥
देव दैत जच्छन उपजायो ॥
आदि अंति एकै अवतारा ॥
सोई गुरू समझियहु हमारा ॥३८५॥
नमसकार तिस ही को हमारी ॥
सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥
सिवकन को सिवगुन सुख दीओ ॥
सत्््रुन को पल मो बध कीओ ॥३८६॥
घट घट के अंतर की जानत ॥
भले बुरे की पीर पछानत ॥
चीटी ते कुँचर असथूला ॥
सभ पर कृपा दृसटि कर फूला ॥३८७॥
संतन दुख पाए ते दुखी ॥
सुख पाए साधुन के सुखी ॥
एक एक की पीर पछानैं ॥
घट घट के पट पट की जानैं ॥३८८॥
जब उदकरख करा करतारा ॥
प्रजा धरत तब देह अपारा ॥
जब आकरख करत हो कबहूँ ॥
तुम मै मिलत देह धर सभहूँ ॥३८९॥
जेते बदन सृसटि सभ धारै ॥
आपु आपनी बूझ उचारै ॥
तुम सभही ते रहत निरालम ॥
जानत बेद भेद अर आलम ॥३९०॥
निरंकार नृबिकार निरलंभ ॥
आदि अनील अनादि असंभ ॥
ताका मूड़्ह उचारत भेदा ॥
जा को भेव न पावत बेदा ॥३९१॥
ता को करि पाहन अनुमानत ॥
महा मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥
महादेव को कहत सदा सिव ॥
निरंकार का चीनत नहि भिव ॥३९२॥
आपु आपनी बुधि है जेती ॥
बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥
तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥
किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥३९३॥
एकै रूप अनूप सरूपा ॥
रंक भयो राव कही भूपा ॥
अंडज जेरज सेतज कीनी ॥
उतभुज खानि बहुर रचि दीनी ॥३९४॥
कहूँ फूल राजा ह्वै बैठा ॥
कहूँ सिमटि भि्यो संकर इकैठा ॥
सगरी सृसटि दिखाइ अचंभव ॥
आदि जुगादि सरूप सुयंभव ॥३९५॥
अब रच्छा मेरी तुम करो ॥
सिक्ख उबारि असिक्ख संघरो ॥
दुशट जिते उठवत उतपाता ॥
सकल मलेछ करो रण घाता ॥३९६॥
जे असिधुज तव सरनी परे ॥
तिन के दुशट दुखित ह्वै मरे ॥
पुरख जवन पग परे तिहारे ॥
तिन के तुम संकट सभ टारे ॥३९७॥
जो कलि को इक बार धिऐ है ॥
ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥
रच्छा होइ ताहि सभ काला ॥
दुसट अरिसट टरें ततकाला ॥३९८॥
कृपा दृसटि तन जाहि निहरिहो ॥
ताके ताप तनक मो हरिहो ॥
रिद्धि सिद्धि घर मो सभ होई ॥
दुशट छाह छ्वै सकै न कोई ॥३९९॥
एक बार जिन तुमै संभारा ॥
काल फास ते ताहि उबारा ॥
जिन नर नाम तिहारो कहा ॥
दारिद दुसट दोख ते रहा ॥४००॥
खड़ग केत मै सरणि तिहारी ॥
आप हाथ दै लेहु उबारी ॥
सरब ठौर मो होहु सहाई ॥
दुसट दोख ते लेहु बचाई ॥४०१॥
कृपा करी हम पर जगमाता ॥
ग्रंथ करा पूरन सुभराता ॥
किलबिख सकल देह को हरता ॥
दुसट दोखियन को छै करता ॥४०२॥
स्री असिधुज जब भए दयाला ॥
पूरन करा ग्रंथ ततकाला ॥
मन बाछत फल पावै सोई ॥
दूख न तिसै बिआपत कोई ॥४०३॥
अड़िल ॥
सुनै गुँग जो याहि सु रसना पावई ॥
सुनै मूड़ चित लाइ चतुरता आवई ॥
दूख दरद भौ निकट न तिन नर के रहै ॥
हो जो या की एक बार चौपई को कहै ॥४०४॥
चौपई ॥
संबत सत्रह सहस भणिजै ॥
अरध सहस फुनि तीनि कहिजै ॥
भाद्रव सुदी असटमी रवि वारा ॥
तीर सतुद्रव ग्रंथ सुधारा ॥४०५॥
इति स्री चरित्र पख्याने तृया चरित्रे मंत्री भूप संबादे चार सौ पाँच चरित्र समापतम सतु सुभम सतु ॥४०५॥७५५८॥ अफजंू ॥
दोहरा ॥
दास जान करि दास परि कीजै कृपा अपार ॥
आप हाथ दै राख मुहि मन क्रम बचन बिचारि ॥४३३॥
चौपई ॥
मै न गनेसहि पृथम मनाऊ ॥
किसन बिसन कबहूँ न धिआऊ ॥
कानि सुने पहिचान न तिन सो ॥
लिव लागी मोरी पग इन सो ॥४३४॥
महाकाल रखवार हमारो ॥
महा लोह मै किंकर थारो ॥
अपुना जानि करो रखवार ॥
बाह गहे की लाज बिचार ॥४३५॥
अपुना जानि मुझै प्रतिपरीऐ ॥
चुनि चुनि सत्र हमारे मरीऐ ॥
देग तेग जग मै दोऊ चलै ॥
राखु आपि मुहि अउर न दलै ॥४३६॥
तुम मम करहु सदा प्रतिपारा ॥
तुम साहिब मै दास तिहारा ॥
जानि आपना मुझै निवाज ॥
आपि करो हमरे सभ काज ॥४३७॥
तुम हो सभ राजन के राजा ॥
आपे आपु गरीब निवाजा ॥
दास जान करि कृपा करहु मुहि ॥
हारि परा मै आनि दवारि तुहि ॥४३८॥
अपुना जानि करो प्रतिपारा ॥
तुम साहिबु मै किंकर थारा ॥
दास जानि कै हाथि उबारो ॥
हमरे सभ बैरीअन संघारो ॥४३९॥
प्रथमि धरो भगवत को ध्याना ॥
बहुरि करो कबिता बिधि नाना ॥
कृसन जथामति चरित्र उचारो ॥
चूक होइ कबि लेहु सुधारो ॥४४०॥
कबिबाच ॥ दोहरा ॥
जो निज प्रभ मो सो कहा सो कहिहों जग माहि ॥
जो तिह प्रभ को धिआइ है अंत सुरग को जाहि ॥५९॥
दोहरा ॥
हरि हरि जन दुइ एक है बिब बिचार कछु नाहि ॥
जल ते उपज तरंग जिउ जल ही बिखै समाहि ॥६०॥
दोहरा ॥
भेख दिखाइ जगत को लोगन को बसि कीन ॥
अंति काल काती कटिओ बासु नरक मो लीन ॥५६॥
दोहरा ॥
तिन बेदीअन की कुल बिखै प्रगटे नानक राइ ॥
सभ सिक्खन को सुख दए जह तह भए सहाइ ॥४॥
चौपई ॥
तिन इह कल मो धरमु चलायो ॥
सभ साधन को राहु बतायो ॥
जो ताँ के मारग महि आए ॥
ते कबहूँ नहि पाप संताए ॥५॥
जे जे पंथ तवन के परे ॥
पाप ताप तिन के प्रभ हरे ॥
दूख भूख कबहूँ न संताए ॥
जाल काल के बीच न आए ॥६॥
कबिबाच ॥ दोहरा ॥
ठाढ भयो मै जोरि कर बचन कहा सिर निआइ ॥
पंथ चलै तब जगत मै जब तुम करहु सहाइ ॥३०॥
दोहरा ॥
सुनि भूपति या जगत मै दुखी रहत हरि संत ॥
अंति लहत है मुकति फल पावत है भगवंत ॥२४५५॥
सोरठा ॥
रुद्र भगत जग माहि सुख के दिवस सदा भरै ॥
मरै फिरि आवहि जाहि फलु कछु लहै न मुकति को ॥२४५६॥
दोहरा ॥
ठीकर फोरि दिलीस सिरि प्रभ पुरि कीया पयान ॥
तेग बहादर सी कृआ करी न किनहूँ आन ॥१५॥
तेग बहादर के चलत भयो जगत को सोक ॥
है है है सभ जग भयो जै जै जै सुर लोक ॥१६॥
दोहरा ॥
जब आइसु प्रभ को भयो जनमु धरा जग आइ ॥
अब मै कथा संछेप ते सबहूँ कहत सुनाइ ॥६४॥
कबिबाच ॥ दोहरा ॥
ठाढ भयो मै जोरि कर बचन कहा सिर निआइ ॥
पंथ चलै तब जगत मै जब तुम करहु सहाइ ॥३०॥
दोहरा ॥
जे जे तुमरे धिआन को नित उठि धिऐहै संत ॥
अंत लहैगे मुकति फलु पावहिगे भगवंत ॥६॥२६२॥
दोहरा ॥
काल पुरख की देहि मो कोटिक बिसन महेस ॥
कोटि इंद्र ब्रहमा किते रवि ससि क्रोरि जलेस ॥१॥
सवैया ॥
छत्री को पूत हौ बामन को नहि कै तपु आवत है जु करो ॥
अरु अउर जंजार जितो गृह को तुहि तिआगि कहा चित ता मै धरो ॥
अब रीझि कै देहु वहै हम कउ जोऊ हउ बिनती कर जोरि करो ॥
जब आउ की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझि मरो ॥२४८९॥
चारणी ॥ दोहरा ॥
जिस नो साजन राखसी दुसमन कवन बिचार ॥
छ्वै न सकै तिह छाहि कौ निहफल जाइ गवार ॥२४॥
जो साधू सरणी परे तिन के कवन बिचार ॥
दंत जीभ जिम राखि है दुसट अरिसट संघार ॥२५॥
दोहरा ॥
सत्रह सै पैतालि महि सावन सुदि थिति दीप ॥
नगर पावटा सुभ करन जमुना बहै समीप ॥२४९०॥
दसम कथा भागौत की भाखा करी बनाइ ॥
अवर बासना नाहि प्रभ धरम जुध के चाइ ॥२४९१॥
सवैया ॥
धंनि जीओ तिह को जग मै मुख ते हरि चित मै जुधु बिचारै ॥
देह अनित न नित रहै जसु नाव चड़ै भव सागर तारै ॥
धीरज धाम बनाइ इहै तन बुधि सु दीपक जिउ उजीआरै ॥
गिआनहि की बढनी मनहु हाथ लै कातरता कुतवार बुहारै ॥२४९२॥
दोहरा ॥
राम कथा जुग जुग अटल सभ कोई भाखत नेत ॥
सुरग बास रघुबर करा सगरी पुरी समेत ॥८५८॥
चौपई ॥
जो इह कथा सुनै अरु गावै ॥
दूख पाप तिह निकटि न आवै ॥
बिसन भगति की ए फल होई ॥
आधि बयाधि छ्वै सकै न कोइ ॥८५९॥
संमत सत्त्रह सहस पचावन ॥
हाड़ वदी पृथमै सुख दावन ॥
त्व प्रसादि करि ग्रंथ सुधारा ॥
भूल परी लहु लेहु सुधारा ॥८६०॥
दोहरा ॥
नेत्र तुँग के चरन तर सतद्रव्व तीर तरंग ॥
स्री भगवत पूरन कीयो रघुबर कथा प्रसंग ॥८६१॥
साध असाध जानो नही बाद सुबाद बिबादि ॥
ग्रंथ सकल पूरण कीयो भगवत कृपा प्रसादि ॥८६२॥
स्वैया ॥
पाइ गहे जब ते तुमरे तब ते कोऊ आँख तरे नही आनयो ॥
राम रहीम पुरान कुरान अनेक कहैं मत एक न मानयो ॥
सिंमृति सासत्र बेद सभै बहु भेद कहै हम एक न जानयो ॥
स्री असिपान कृपा तुमरी करि मै न कहयो सभ तोहि बखानयो ॥८६३॥
दोहरा ॥
सगल दुआर कउ छाडि कै गहयो तुहारो दुआर ॥
बाहि गहे की लाज असि गोबिंद दास तुहार ॥८६४॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
रामकली महला ३ अनंदु
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥
सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥
राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥
सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥
कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥
ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥
हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥
अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥
सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥
कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥
साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥
घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥
सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥
नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥
कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥
साचा नामु मेरा आधारो ॥
साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥
करि साँति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥
सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥
कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥
साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥
वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥
घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥
पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥
धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥
कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥५॥
अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥
पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥
दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥
संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥
सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥
बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥
मुँदावणी महला ५ ॥
थाल विचि तिंनि वसतू पईओ सतु संतोखु वीचारो ॥
अंमृत नामु ठाकुर का पइओ जिस का सभसु अधारो ॥
जे को खावै जे को भुँचै तिस का होइ उधारो ॥
एह वसतु तजी नह जाई नित नित रखु उरि धारो ॥
तम संसारु चरन लगि तरीऐ सभु नानक ब्रहम पसारो ॥१॥
सलोक महला ५ ॥
तेरा कीता जातो नाही मैनो जोगु कीतोई ॥
मै निरगुणिआरे को गुणु नाही आपे तरसु पइओई ॥
तरसु पइआ मिहरामति होई सतिगुरु सजणु मिलिआ ॥
नानक नामु मिलै ताँ जीवाँ तनु मनु थीवै हरिआ ॥१॥
पउड़ी ॥
तिथै तू समरथु जिथै कोइ नाहि ॥
ओथै तेरी रख अगनी उदर माहि ॥
सुणि कै जम के दूत नाइ तेरै छडि जाहि ॥
भउजलु बिखमु असगाहु गुर सबदी पारि पाहि ॥
जिन कउ लगी पिआस अंमृतु सेइ खाहि ॥
कलि महि एहो पुँनु गुण गोविंद गाहि ॥
सभसै नो किरपालु सम्माले साहि साहि ॥
बिरथा कोइ न जाइ जि आवै तुधु आहि ॥९॥
सलोकु म: ५ ॥
अंतरि गुरु आराधणा जिहवा जपि गुर नाउ ॥
नेत्री सतिगुरु पेखणा स्रवणी सुनणा गुर नाउ ॥
सतिगुर सेती रतिआ दरगह पाईऐ ठाउ ॥
कहु नानक किरपा करे जिस नो एह वथु देइ ॥
जग महि उतम काढीअहि विरले केई केइ ॥१॥
म: ५ ॥
रखे रखणहारि आपि उबारिअनु ॥
गुर की पैरी पाइ काज सवारिअनु ॥
होआ आपि दइआलु मनहु न विसारिअनु ॥
साध जना कै संगि भवजलु तारिअनु ॥
साकत निंदक दुसट खिन माहि बिदारिअनु ॥
तिसु साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥
जिसु सिमरत सुखु होइ सगले दूख जाहि ॥२॥