ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
पातिशाही १० ॥
त्व प्रसादि ॥ सवय्ये ॥
स्रावग सुद्ध समूह सिधान के देखि फिरिओ घर जोग जती के ॥
सूर सुरारदन सुद्ध सुधादिक संत समूह अनेक मती के ॥
सारे ही देस को देखि रहिओ मत कोऊ न देखीअत प्रानपती के ॥
स्री भगवान की भाइ कृपा हू ते एक रती बिनु एक रती के ॥१॥२१॥
माते मतंग जरे जर संग अनूप उतंग सुरंग सवारे ॥
कोट तुरंग कुरंग से कूदत पउन के गउन को जात निवारे ॥
भारी भुजान के भूप भली बिधि निआवत सीस न जात बिचारे ॥
एते भए तु कहा भए भूपति अंत को नाँगे ही पाँइ पधारे ॥२॥२२॥
जीत फिरै सभ देस दिसान को बाजत ढोल मृदंग नगारे ॥
गुँजत गूड़ गजान के सुँदर हिंसत हैं हयराज हजारे ॥
भूत भविक्ख भवान के भूपत कउनु गनै नहीं जात बिचारे ॥
स्री पति स्री भगवान भजे बिनु अंत कउ अंत के धाम सिधारे ॥३॥२३॥
तीरथ नान दइआ दम दान सु संजम नेम अनेक बिसेखै ॥
बेद पुरान कतेब कुरान जमीन जमान सबान के पेखै ॥
पउन अहार जती जत धार सबै सु बिचार हजार क देखै ॥
स्री भगवान भजे बिनु भूपति एक रती बिनु एक न लेखै ॥४॥२४॥
सु्ुध सिपाह दुरंत दुबाह सु साज सनाह दुरजान दलैंगे ॥
भारी गुमान भरे मन मैं कर परबत पंख हले न हलैंगे ॥
तोरि अरीन मरोरि मवासन माते मतंगन मान मलैंगे ॥
स्री पति स्री भगवान कृपा बिनु तिआगि जहान निदान चलैंगे ॥५॥२५॥
बीर अपार बडे बरिआर अबिचारहि सार की धार भछय्या ॥
तोरत देस मलिंद मवासन माते गजान के मान मलय्या ॥
गाड़्हे गड़्हान को तोड़नहार सु बातन हीं चक चार लवय्या ॥
साहिबु स्री सभ को सिरनाइक जाचक अनेक सु एक दिवय्या ॥६॥२६॥
दानव देव फनिंद निसाचर भूत भविख भवान जपैंगे ॥
जीव जिते जल मै थल मै पल ही पल मै सभ थाप थपैंगे ॥
पुँन प्रतापन बाढ जैत धुन पापन के बहु पुँज खपैंगे ॥
साध समूह प्रसंन फिरैं जग सत्र सभै अविलोक चपैंगे ॥७॥२७॥
मानव इंद्र गजिंद्र नराधप जौन तृलोक को राज करैंगे ॥
कोटि इसनान गजादिक दान अनेक सुअंबर साज बरैंगे ॥
ब्रहम महेसर बिसन सचीपति अंत फसे जम फास परैंगे ॥
जे नर स्री पति के प्रस हैं पग ते नर फेर न देह धरैंगे ॥८॥२८॥
कहा भयो जो दोऊ लोचन मूँद कै बैठि रहिओ बक धिआन लगाइओ ॥
न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रनि लोक गयो परलोक गवाइओ ॥
बास कीओ बिखिआन सों बैठ कै ऐसे ही ऐसे सु बैस बिताइओ ॥
साचु कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभु पाइओ ॥९॥२९॥
काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंगु गरे लटकाइओ ॥
काहू लखिओ हरि अवाची दिसा महि काहू पछाह को सीसु निवाइओ ॥
कोऊ बुतान को पूजत है पसु कोऊ मृतान को पूजन धाइओ ॥
कूर कृआ उरझिओ सभ ही जग स्री भगवान को भेदु न पाइओ ॥१०॥३०॥